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________________ || यस्स उत्तरेणं इमीसे रयणप्प० पुढ० बहुसमरमणिजाओ भूमिभागाओ उहूं चंदिमसूरियजहा ठाणपदे जाव मझे ईसाणवडेंसए महाविमाणे से णं ईसाणवडेंसए महाविमाणे अद्धतेरस जोयणसयसहस्साई एवं जहा दसमसए सक्कविमाणवत्तवया साइहवि ईसाणस्स निरवसेसा भाणियचा जाव आयरक्खा, ठिती सातिरेगाई दो सागरोवमाई, सेसं तंचेव जावईसाणे देविंदे देवरायाई०२, सेवं भंते ! सेवं भंतेत्ति॥(सूत्र ६०३)॥१७-4॥ ___ 'कहि 'मित्यादि, 'जहा ठाणपए'त्ति प्रज्ञापनाया द्वितीयपदे, तत्र चेदमेवम्-'उहुं चंदिमसूरियगहगणणक्खत्ततारा| रूवाणं बहूई जोयणसयाई बहूई जोयणसहस्साई बहूई जोयणसयसहस्साई जाव उप्पइत्ता एत्थ णं ईसाणे णाम कप्पे पन्नत्ते इत्यादि, 'एवं जहा दसमसए सक्कविमाणवत्तवया'इत्यादि, अनेन च यत्सूचितं तदित्थमवगन्तव्यम्-'अद्धतेरसजोयणसयसहस्साई आयामविक्खंभेणं ऊयालीसं च सयसहस्साई बावन्नं च सहस्साई अह य अडयाले जोयणसए परिक्खेवेण मित्यादि । सप्तदशशते पञ्चमः॥१७-५॥ पञ्चमोदेशके ईशानकल्प उक्तः, षष्ठे तु कल्पादिषु पृथिवीकायिकोत्पत्तिरुच्यत इत्येवंसम्बन्धस्यास्येदमादिसूत्रम्पुढविकाइए णं भंते ! इमीसे रय० पुढ० समोहए २ जे भविए सोहम्मे कप्पे पुढविक्काइयत्ताए उववजित्तए से भंते ! किं पुर्वि उववजित्ता पच्छा संपाउणेजा पुर्वि वा संपाउणित्ता पच्छा उवव०१, गोयमा ! पुविं वा उववजित्ता पच्छा संपाउणेजा पुचिं वा संपाउणित्ता पच्छा उववजेजा, से केण?णं जाव पच्छा उवव Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.600226
Book TitleBhagwati sutram Part 03
Original Sutra AuthorAbhaydevsuri
Author
PublisherAgamoday Samiti
Publication Year1921
Total Pages654
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript & agam_bhagwati
File Size13 MB
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