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व्याख्यानाला विराहए ?, गोयमा आराहए नो विराहए, से य संपढिए संपत्ते अप्पणा य, एवं संपत्तेणवि चत्तारि आला- शतके प्रज्ञप्तिः वगा भाणियचा जहेव असंपत्तेणं । निग्गंथेण य बहिया वियारभूमि विहारभूमि वा निक्खंतेणं अन्नयरे
द उद्देशः६ अभयदेवीअकिच्चट्ठाणे पडिसेविए तस्स णं एवं भवति-इहेव ताव अहं एवं एत्थवि एते चेव अट्ठ आलावगा भाणियवा
अकृत्यसेवा या वृत्तिः जाव नो विराहए। निग्गंथेण य गामाणुगामं दूइज्जमाणेणं अन्नयरे अकिञ्चट्ठाणे पडिसेविए तस्स णं एवं
यां तत्रान्य
पासाला तस्स एकत्रचप्रायश्चि ॥३७५॥ भवति इहेव ताव अहं एत्थवि ते चेव अट्ट आलावगा भाणियवा जाव नो विराहए। निग्गंथीए य गाहावइ-दू सू ३३४
कुलं पिंडवायपडियाए अणुपविहाए अन्नयरे अकिच्चट्ठाणे पडिसेविए तीसे णं एवं भवइ इहेव ताव अहं एयस्स ठाणस्स आलोएमि जाव तवोकम्मपडिवजामितओ पच्छा पवत्तिणीए.अंतियं आलोएस्सामि जाब |पडिवजिस्सामि, सा य संपट्ठिया असंपत्ता पवत्तिणी य अमुहा सिया सा णं भंते ! किं आराहिया विराहिया ?, गोयमा ! आराहिया नो विराहिया, सा य संपट्ठिया जहा निग्गंथस्स तिन्निगमा भणिया एवं निग्गथीएवि तिन्नि आलावगा भाणियचा जाव आराहिया नो विराहिया ॥ से केण?णं भंते ! एवं बुचइ-आराहए नो विराहए?, गोयमा ! से जहा नामए-केइ पुरिसे एगं महं उन्नालोमं वागयलोमं वासणलोमं वा कप्पासलोमं वा तणसूयं वा दुहा वा तिहा वा संखेजहा वा छिदित्ता अगणिकायंसि पक्खिवेजा से नूर्ण गोयमा ?
॥३७५॥ ४ छिज्जमाणे छिन्ने पक्खिप्पमाणे पक्खित्ते दज्झमाणे दहृत्ति वत्तवं सिया ?, हंता भगवं छिज्जमाणे छिन्ने जाव & दहृत्ति वत्त सिया, से जहा वा केइ पुरिसे वत्थं अहतं वा धोतं वा तंतुग्गयं वा मंजिहादोणीए पक्खिवेज्जा
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