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________________ एवं किरियापर्य'ति, 'एवम् एतेन क्रमेण क्रियापदं प्रज्ञापनाया द्वाविंशतितमं, तश्चैवं-'काइया अहिगरणिया। || पाओसिया पारियावणिया पाणाइवायकिरिया' इत्यादि, अन्तिमं पुनरिदं सूत्रमत्र 'एयासि णं भंते ! आरंभियाणं परि ग्गहियाणं अप्पचक्खाणियाणं मायावत्तियाण मिच्छादसणवत्तियाण य कयरेश्हिंतो अप्पा वा बहया वा तुल्ला वा विसेसाहिया वा १. गोयमा ! सबथोवा मिच्छादसणवत्तियाओ किरियाओ' मिथ्यादृशामेव तद्भावात, 'अप्पच्चक्खाण| किरियाओ विसेसाहियाओ' मिथ्यादृशामविरतसम्यग्दृशां च तासां भावात् , 'परिग्गहियाओ विसेसाहियाओ' पर्वोक्तानां* देशविरतानां च तासां भावात, 'आरंभियाओ किरियाओ विसेसाहियाओ' पूर्वोकानां प्रमत्तसंयतानां च तासां भावात, 'मायावत्तियाओ विसेसाहियाओ' पूर्वोक्तानामप्रमत्तसंयतानां च तद्भावादिति, एतदन्तं चेदं वाच्यमिति| दर्शयन्नांह-'जावेत्यादि, इह गाथे-"मिच्छापच्चक्खाणे परिग्गहारंभमायकिरियाओ। कमसो मिच्छा अविरयटेसपमान|प्पमत्ताणं ॥१॥ मिच्छत्तवत्तियाओ मिच्छद्दिट्ठीण चेव तो थोवा । सेसाणं एकेको बहा रासी तओ अडिया " इति ॥ [गतार्थे पूर्वोक्तेन] ॥ अष्टमशते चतुर्थोद्देशकः॥८-४॥ क्रियाधिकारात्पश्चमोद्देशके परिग्रहादिक्रियाविषयं विचारं दर्शयन्नाहरायगिहे जाव एवं वयासी-आजीविया णं भंते ! धेरे भगवंते एवं वयासी-समणोवासगस्स णं भंते? सामाइयकडस्स समणोवस्सए अच्छमाणस्स केइ भंडे अपहरेजा से णं भंते ! तं भंडं अणुगवेसमाणे किं Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.600225
Book TitleBhagwati sutram Part 02
Original Sutra AuthorAbhaydevsuri
Author
PublisherAgamoday Samiti
Publication Year1919
Total Pages664
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript & agam_bhagwati
File Size13 MB
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