SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 545
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ नरए किं सम्मद्दिट्ठीनेरइया पुच्छा, गोयमा ! सम्मट्टिीनेरइया न उवव० मिच्छादिट्ठीनेरइया उवव० सम्मा|| मिच्छदिट्ठी नेरइया न उवव० एवं उच्चट्टतिवि अविरहिए जहेव रयणप्पभाए, एवं असंखेजवित्थडेसुवि तिन्नि || गमगा (सूत्रं ४७१) सेनूणं भंते ! कण्हलेस्से नीललेस्सेजाव सुक्कलेस्से भवित्ता कण्हलेस्सेसुनेरइएसु उवव०,15 हंता गोयमा! कण्हलेस्से जाव उववजंति, सेकेण?णं भंते ! एवं वुच्चइ कण्हलेस्से जाव उववजंति?, गोयमा! | लेस्सट्टाणेसु संकिलिस्समाणेसु संकि०२ कण्हलेसं परिणमइ कण्ह०२ कण्हलेसेसु नेरइएसु उववजंति से| तेणटेणं जाव उववर्जति । से नूर्ण भंते ! कण्हलेस्से जाव सुकले से भवित्ता नीललेस्सेसु नेरइएसु उववजंति ?, हंता गोयमा ! जाव उववजंति, से के ण?णं जाव उववजंति ?, गोयमा! लेस्सहाणेसु संकिलि-18 |स्समाणेसु वा विसुज्झमाणेसु नीललेस्सं परिणमंति नील. २ नीललेस्सेसु नेरइएसु उवव० से तेण?णं है गोयमा ! जाव उवव०, से नूणं भंते ! कण्हलेस्से नील जाव भवित्ता काउलेस्सेसु नेरइएसु उवव० एवं | | जहा नीललेस्साए तहा काउलेस्सावि भाणियबा जाव से तेणटेणं जाव उववजंति । सेवं भंते ! सेवं| भंते ! (सूत्रं ४७२)॥१३-१॥ 'पुढवी'त्यादि, 'पुढवी'ति नरकपृथिवीविषयः प्रथमः १, 'देव'त्ति देवप्ररूपणार्थो द्वितीयः २'अणंतर'त्ति अनन्तराहारा नारका इत्याद्यर्थः प्रतिपादनपरस्तृतीयः ३, 'पुढवित्ति पृथिवीगतवक्तव्यताप्रतिबद्धश्चतुर्थः ४, 'आहार'त्ति नारकाद्याहारप्ररूपणार्थः पञ्चमः ५, 'उववाए'त्ति नारकाद्युपपातार्थः षष्ठः ६, "भास'त्ति भाषार्थः सप्तमः ७ 'कम्म'त्ति || Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.600225
Book TitleBhagwati sutram Part 02
Original Sutra AuthorAbhaydevsuri
Author
PublisherAgamoday Samiti
Publication Year1919
Total Pages664
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript & agam_bhagwati
File Size13 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy