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________________ व्याख्या प्रज्ञप्तिः अभयदेवीया वृत्तिः २ ॥५९८॥ | निरयावाससयस हस्से पण्णत्ते, सेसं जहा पंकप्पभाए ॥ अहेसत्तमाएं णं भंते ! पुढवीए कति अणुत्तरा मह - तिमहालया महानिरया पन्नत्ता १, गोयमा ! पंच अणुत्तरा जाव अपइट्ठाणे, ते णं भंते । किं संखेज्जवित्थडा 4 असंखेज्जवित्थडा ?, गोयमा ! संखेजवित्थडे य असंखेज्जवित्थडा य, अहेसत्तमाएं णं भंते ! पुढवीए पंचसु अणुसरेमु महतिमहालया जाब महानिरएस संखेजवित्थडे नरए एगसमएणं केवतिया उव० १, एवं जहा | पंकप्पभाए नवरं तिसु नाणेसु न उवव० न उछट्ट०, पन्नत्त एस तहेव अस्थि, एवं असंखेज्ज वित्थडे सुवि नवरं असं| खेजा भाणिया ॥ (सूत्रं ४७० ) ॥ इमीसे णं भंते ! रयणप्पभाए पुढवीए तीसाए निरयावाससय सहस्सेसु संखेजवि' नरएस किं सम्मद्दिट्ठी नेरतिया उवव० मिच्छदिट्ठी ने० उव० सम्मामिच्छदिट्ठी नेर० उव० १, | गोयमा ! सम्मदिट्ठीवि नेरइया उव० मिच्छादिट्ठीवि नेरइया उव० नो सम्मामिच्छदिट्ठी उव० । इमीसे णं भंते! रयणप्पभाए पुढवीए तीसाए निरयावाससयस हस्सेसु संखेज्जवित्थडेसु नरएस किं सम्मदिट्ठी नेर० | उति एवं चेव । इमीसे णं भंते ! रयणप्पभाए पुढवीए तीसाए निरयावास सय सहस्सेसु संखेज्जवित्थडा | नरगा किं सम्मदिट्ठीहिं नेरइएहिं अविरहिया मिच्छादिट्ठीहिं नेरइएहिं अविरहिया सम्मामिच्छदिट्ठीहिं नेरइएहिं अविरहिया वा ?, गोयमा ! सम्मद्दिट्ठीहिंवि नेरइएहिं अविरहिया मिच्छादिट्ठीहिवि अविरहिया सम्मामिच्छादिट्ठीहिं अविरहिया विरहिया वा, एवं असंखेज्ज वित्थडे सुवि तिन्नि गमगा भाणियन्वा, एवं सक्करप्पभाएवि एवं जाव तमाएवि । अहेसत्तमाए णं भंते! पुढवीए पंचसु अणुत्तरेसु जाव संखेज्जवित्थडे Jain Education International For Personal & Private Use Only १२ शतके |१ उद्देशः रत्नप्रभादिधूत्पादः सू ४७१ ॥५९८॥ www.jainelibrary.org
SR No.600225
Book TitleBhagwati sutram Part 02
Original Sutra AuthorAbhaydevsuri
Author
PublisherAgamoday Samiti
Publication Year1919
Total Pages664
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript & agam_bhagwati
File Size13 MB
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