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________________ | पडिमा निरवसेसा भाणियवा [जाव दसाहिं] जाव आराहिया भवइ । (सूत्रं ३९९ ) भिक्खू य अन्नयरं अकिञ्चट्ठाणं | पडिसेवित्ता से णं तस्स ठाणस्स अणालोइयपडिक्कते कालं करेइ नत्थि तस्स आराहणा, से णं तस्स ठाणस्स | आलोइयपडिक्कते कालं करेइ अत्थि तस्स आराहणा, भिक्खू य अन्नयरं अकिञ्चट्ठाणं पडिसेवित्ता तस्स णं | एवं भवइ पच्छावि णं अहं चरमकालसमयंसि एयस्स ठाणस्स आलोएस्सामि जाव पडिवज्जिस्सामि, से णं तस्स ठाणस्स अणालोइयपडिकंते जाव नत्थि तस्स आराहणा, से णं तस्स ठाणस्स आलोइयपडिक्कते कालं करेइ अत्थि तस्स अराहणा, भिक्खू य अन्नयरं अकिचट्ठाणं पडिसेवित्ता तस्स णं एवं भवइ - जइ ताव | समणोवासगावि कालमासे कालं किच्चा अन्नयरेसु देवलोएस देवत्ताए उववत्तारो भवंति किमंग पुण अहं | अन्नपन्नियदेवत्तणंपि नो लभिस्सामित्तिकट्टु से णं तस्स ठाणस्स अणालोइयपडिते कालं करेइ नत्थि तस्स आराहणा से णं तस्स ठाणस्स आलोइयपडिक्कते कालं करेइ अत्थि तस्स आराहणा । सेवं भंते ! सेवं भंतेत्ति ॥ ( सूत्रं ४०० ) ।। १० । २ ॥ 'मासि यण्ण' मित्यादि, मासः परिमाणं यस्याः सा मासिकी तां 'भिक्षुप्रतिमां' साधुप्रतिज्ञाविशेषं 'वोसट्टे का 'ति व्युत्सृष्टे स्नानादिपरिकर्म्मवर्जनात् 'चियत्ते देहे'त्ति त्यक्ते वधबन्धाद्यवारणात्, अथवा 'चियत्ते' समते प्रीतिविषये धर्मसाधनेषु प्रधानत्वाद्देहस्येति 'एवं मासिया भिक्खुपडिमा 'इत्यादि, अनेन च यदतिदिष्टं तदिदं - 'जे केइ परीसहोव - सग्गा उप्पज्जंति, तंजहा - दिवा वा माणुसा वा तिरिक्खजोणिया वा ते उप्पन्ने सम्मं सहइ खमइ तितिक्खइ अहियासेई' Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.600225
Book TitleBhagwati sutram Part 02
Original Sutra AuthorAbhaydevsuri
Author
PublisherAgamoday Samiti
Publication Year1919
Total Pages664
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript & agam_bhagwati
File Size13 MB
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