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________________ सार्धादि सू २२० व्याख्या | अपएसे, जति णं अजो ! खेत्तादेसेणवि सब्वपोग्गला सअ०३ जाव एवं ते एगपएसोगाढेवि पोग्गले || || ५ शतके प्रज्ञप्तिः सअढे समज्झे सपएसे, जति णं अज्जो ! कालादेसेणं सव्वपोग्गला सअड्डा० समज्झा सपएसा, एवं ते उद्देशः ८ अभयदेवी-|| एगसमयठितीएवि पोग्गले ३ तं चेव, जति णं अजो! भावादेसेणं सव्वपोग्गला सअड्डा समझा सप- | पुद्गलानां या वृत्तिः एसा ३, एवं ते एगगुणकालएवि पोग्गले सअ०३ तं चेव, अह ते एवं न भवति तो जं वयसि दव्वादेसेणवि ॥२४॥ सव्वपोग्गला सअ० ३ नो अणड्डा अमज्झा अपदेसा एवं खेत्तादेसेणवि काला भावादेसेणवि तन्नं मिच्छा, तए णं से नारयपुत्ते अणगारे नियंठीपुत्तं अ० एवं वयासी-नो खलु वयं देवा० एयमढे जाणामो पासामो, जति णं देवा० नो गिलायंति परिकहित्तए तं इच्छामि गं देवा० अंतिए एयमढे सोचा निसम्म जाणित्तए, तए णं से नियंठीपुत्ते अणगारे नारयपुत्तं अणगारं एवं वयासी-व्वादेसेणवि मे अजो सब्वे पोग्गला सपदेसावि अपदेसावि अणंता खेत्तादेसेणवि एवं चेव कालादेसेणवि भावादेसेणवि एवं चेव ॥ जे दव्वओ अप्पदेसे से खेत्तओ नियमा अप्पदेसे कालओ सिय सपदेसे सिय अपदेसे भावओ सिय सपदेसे सिय अपदेसे । जे खेत्तओ अप्पदेसे से व्वओ सिय सपदेसे सिय अपदेसे कालओ भयणाए भावओ भयणाए । जहा खेत्तओ एवं कालओ भावओ॥ जे दुव्वओ सपदेसे से खेत्तओ सिय सपदेसे सिय अपदेसे, ॥२४॥ एवं कालओ भावओवि, जे खेत्तओ सपदेसे से दबतो नियमा सपदेसे कालओ भयणाए भावओ भयणाए जहा व्वओ तहा कालओ भावओवि ॥ एएसिणं भंते ! पोग्गलाणं दव्वादेसेणं खेत्तादेसेणं काला dan Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.600224
Book TitleBhagwati sutram Part 01
Original Sutra AuthorAbhaydevsuri
Author
PublisherAgamoday Samiti
Publication Year1918
Total Pages656
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript & agam_bhagwati
File Size13 MB
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