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व्याख्या- प्रथमसूत्रसममिदं चतुर्थमित्येतदनुसारेण च सूत्रपुस्तकाक्षराण्यनुगन्तव्यानि ॥ क्रियाऽधिकारादिदमाह-'अगणी त्यादि, || ५ शतके प्रज्ञप्तिः 'अहुणोजलिए'त्ति 'अधुनोज्वलितः' सद्यःप्रदीप्तः 'महाकम्मतराए'त्ति विध्यायमानानलापेक्षयाऽतिशयेन महान्ति उद्देशः ६ अभयदेवी- कर्माणि-ज्ञानावरणादीनि बन्धमाश्रित्य यस्यासौ महाकर्मतरः, एवमन्यान्यपि, नवरं क्रिया-दाहरूपा आश्रयो-नवकर्मोया वृत्तिः पादानहेतुः वेदना-पीडा भाविनि तत्कर्मजन्या परस्परशरीरसंबाधजन्या वा 'वोक्कसिजमाणे'त्ति 'व्यवकृष्यमाणः' अप
| क्रियावत्त्वं
सू २०७ ॥२२९॥ | कर्ष गच्छन् 'अप्पकम्मतराए'त्ति अङ्गाराद्यवस्थामाश्रित्य, अल्पशब्दः स्तोकार्थः, [क्षारावस्थायां त्वभावार्थः ] ॥ क्रिया
धिकारादेवेदमाह| पुरिसे णं भंते धणुं परामुसइ धणुं परामुसित्ता उसुंपरामुसइ २ ठाणं ठाइ ठाणं ठिचा आयतकण्णाययं उसुंए
करेंति आययकन्नाययं उसुकरेत्ता उखु वेहासं उसु उव्विहइ२ततोणं से उसुंउई वेहासं उविहिए समाणे जाईतत्थ | पाणाई भूया जीवाई सत्ताई अभिहणइ वत्तेति लेस्सेति संघाएइ संघद्देति परितावेइ किलामेइ ठाणाओ ठाणं संकामेइ जीवियाओ ववरोवेइ तए णं भंते ! से पुरिसे कतिकिरिए ?, गोयमा ! जावं च णं से पुरिसे |धणुं परामुसइ २ जाव उब्विहइ तावं च णं से पुरिसे कातियाए जाव पाणातिवायकिरियाए पंचहिं किरियाहिं पुढे, जेसिपि य णं जीवाणं सरीरेहिं धणू निव्वत्तिए तेऽवि य णं जीवा काइयाए जाव पंचहि किरियाहिं पुढे, एवं धणुपुढे पंचहि किरियाहिं, जीवा पंचहिं, हारू पंचहिं, उसू पंचहि, सरे पत्तणे फले पहारू पंचहिं,
॥२२९॥ ॥ (सूत्रं २०६)॥ अहे णं से उसुं अप्पणो गुरुयत्ताए भारियत्ताए गुरुसंभारियत्ताए अहे वीससाए पचो-|
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