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________________ च विवक्षया दीर्घमेवायुः ॥ विपर्ययसूत्रं प्रागिव, नवरं इहापि प्रासुकाप्रासुकतया दानं न विशेषितं, पूर्वसूत्रविपर्ययत्वाद् अस्य, पूर्वसूत्रस्य चाविशेषणतया प्रवृत्तत्वात् , न च प्रासुकाप्रासुकदानयोः फलं प्रति न विशेषोऽस्ति, पूर्वसूत्रयोस्तस्य प्रतिपादितत्वात् , तस्मादिह प्रासुकैषणीयस्य दानस्य कल्प्याप्राप्तावितरस्य चेदं फलमवसेयं, वाचनान्तरे तु 'फासुएण'मित्यादि दृश्यत एवेति, इह च प्रथममल्पायुःसूत्रं द्वितीयं तद्विपक्षस्तृतीयमशुभदीर्घायुःसूत्रं चतुर्थ तु तद्विपक्ष इति ॥ | अनन्तरं कर्मबन्धक्रियोक्ता, अथ क्रियान्तराणां विषयनिरूपणायाह| गाहावइस्स णं भंते ! भंडं विकिणमाणस्स केइ भंडं अवहरेजा ? तस्स णं भंते ! तं भंडं अणुगवेसमाणस्स किं आरंभिया किरिया कजइ परिग्गहिया०माया० अप० मिच्छा?, गोयमा ! आरंभिया किरिया कजइ लोपरि माया. अपच्च० मिच्छादसणकिरिया सिय कजइ सिय नो कजह ॥ अह से भंडे अभिसमन्नागए भवति, तओ से पच्छा सव्वाओ ताओ पयणुईभवंति ॥ गाहावतिस्स णं भंते । तं भंडं विक्किणमाणस्स कत्तिए भंडे सातिज्जेजा ?, भंडे य से अणुवणीए सिया, गाहावतिस्स णं भंते! ताओ भंडाओ किं आरंभिया किरिया कजई जाव मिच्छादसणकिरिया कज्जइ ? कइयस्स वा ताओ भंडाओ किं आरंभिया किरिया कन्जइ जाव मिच्छादसणकिरिया कज्जइ ?, गोयमा!गाहावइस्स ताओ भंडाओ आरंभिया किरिया कजंह जाव अपचक्वाणिया मिच्छादसणवत्तिया किरिया सिय कज्जइ सिय नो कजइ, कतियस्स णं ताओ सव्वाओ पयणुई। भवंति।गाहावतिस्स गं भंते ! भंडं विक्किणमाणस्स जाच भंडे से उबणीए सिया? कतियस्सणं भंते ! ताओ Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.600224
Book TitleBhagwati sutram Part 01
Original Sutra AuthorAbhaydevsuri
Author
PublisherAgamoday Samiti
Publication Year1918
Total Pages656
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript & agam_bhagwati
File Size13 MB
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