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________________ वध्यमाश्रित्यान्यतो वा तत्रैव जन्मनि जन्मान्तरे वा, यदाह-वहमारणअब्भक्खाणदाणपरधणविलोवणाईणं । सबजहन्नो उदओ दसगुणिओ एक्कसिकयाणं ॥१॥"ति, 'चः' समुच्चयेऽनवकाङ्गक्षणा-परप्राणनिरपेक्षा स्वगतापायपरिहार| निरपेक्षा वा वृत्तिः-वर्तनं यत्रैव वैरे तत्तथा तेनानवकाङ्क्षणवृत्तिकेनेति ५॥ क्रियाऽधिकार एवेदमाह| दो भंते ! पुरिसा सरिसया सरित्तया सरिव्वया सरिसभंडमत्तोवगरणा अन्नमन्नेणं सद्धिं संगाम संगा मेन्ति, तत्थ णं एगे पुरिसे पराइणइ एगे पुरिसे पराइज्जइ, से कहमेयं भंते ! एवं ?, गोयमा! सवीरिए पराइ|णइ अवीरिए पराइज्जइ, सेकेणटेणं जाव पराइज्जइ?, गोयमा ! जस्स णं वीरियवज्झाई कम्माई णो बद्धाई Xणो पुट्ठाई जाव नो अभिसमन्नागयाइं नो उदिन्नाई उवसंताई भवंति से णं पराइणइ, जस्स णं वीरियवज्झाई कम्माइं बद्धाइं जाव उदिन्नाइं नो उवसंताई भवंति से णं पुरिसे पराइजइ, से तेणटेणं गोयमा ! एवं वुच्चइसवीरिए पराइणइ अवीरिए पराइज्जइ ॥ (सू०७०) - 'सरिसय'त्ति सदृशको कौशलप्रमाणादिना 'सरित्तय'त्ति 'सदृक्त्वची' सदृशच्छवी 'सरिव्वय'त्ति सदृग्वयसौ समानयौवनाद्यवस्थौ 'सरिसभंडमत्तोवगरण'त्ति भाण्डं-भाजनं मृन्मयादि मात्रो-मात्रया युक्त उपधिः स च कांस्यभाजनादिभोजनभण्डिका भाण्डमात्रा वा-गणिमादिद्रव्यरूपः परिच्छदः उपकरणानि-अनेकधाऽऽवरणप्रहरणादीनि १ वधमारणाभ्याख्यानदानपरधनविलोपनादीनामेकशः कृतानामपि सर्वजघन्य उदयो दशगुणितः ॥१॥ Jain Education for For Personal & Private Use Only XMainelibrary.org
SR No.600224
Book TitleBhagwati sutram Part 01
Original Sutra AuthorAbhaydevsuri
Author
PublisherAgamoday Samiti
Publication Year1918
Total Pages656
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript & agam_bhagwati
File Size13 MB
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