________________
एताः पञ्च निगदसिद्धा एव ॥ २७२-२७६ ॥ एवं तावत्सामान्येन प्रव्रज्यापर्यायः प्रतिपादितः, साम्प्रतमत्रैव भेदेन भगवतां कुमारादिपर्यायं प्रतिपादयन्नाहउसभस्स कुमारत्तं पुव्वाणं वीसई सयसहस्सा। तेवढी रजंमी अणुपालेऊण णिक्खंतो ॥ २७७॥ अजिअस्स कुमारत्तं अट्ठारस पुव्वसयसहस्साई । तेवणं रजंमी पुव्वंगं चेव बोद्धव्वं ॥ २७८॥ पण्णरस सयसहस्सा कुमारवासो असंभवजिणस्स । चोआलीसं रजे चउरंग चेव बोद्धव्वं ॥ २७९ ॥ अद्धत्तेरस लक्खा पुव्वाणऽभिणंदणे कुमारत्तं । छत्तीसा अई चिय अटुंगा चेव रजमि ॥ २८०॥ सुमइस्स कुमारत्तं हवंति दस पुत्वसयसहस्साई । अउणातीसं रज्जे बारस अंगा य बोद्धव्वा ॥ २८१ ॥ पउमस्स कुमारत्तं पुवाणऽट्ठमा सयसहस्सा । अद्धं च एगवीसा सोलस अंगा य रजमि ॥ २८२॥ पुव्वसयसहस्साई पंच सुपासे कुमारवासो उ । चउदस पुण रजमी वीसं अंगा य बोद्धव्वा ॥ २८३ ॥ अड्डाइजा [अद्भुट्टा उ] लक्खा कुमारवासोससिप्पहे होइ । अद्धं छ चिय रज्जे चउवीसंगा य बोडव्वा ॥२८४॥ |पण्णं पुव्वसहस्सा कुमारवासो उ पुप्फदेतस्स । तावइ रज्जंमी अट्ठावीसं च पुवंगा ॥ २८५॥ पणवीससहस्साई पुव्वाणं सीअले कुमारत्तं । तावह परिआओ पण्णासं चेव रजमि ॥ २८६ ॥ वासाण कुमारत्तं इगवीसं लक्ख हंति सिजसे । तावइ परिआओ बायालीसं च रज्जंमि ॥ २८७ ॥ गिहवासे अट्ठारस वासाणं सयसहस्स निअमेणं । चउपण्ण सयसहस्सा परिआओ होइ वसुपुज्जे ॥ २८८॥
Jain Education International
For Personal & Private Use Only
www.jainelibrary.org