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आवश्यक
हारिभद्रीयवृत्तिः विभागः१
॥१४॥
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निगदसिद्धैव, नवरं मूलसूत्रकर्त्तारो गणधरा उच्यन्ते ॥ २६९ ॥ गतं गणधरद्वारम् , इदानीं धर्मोपायस्य देशका इत्येतद्व्याचिख्यासुराहधम्मोवाओ पवयणमहवा पुब्वाइँ देसगा तस्स । सव्वजिणाण गणहरा चउदसपुवी व जे जस्स ॥२७॥ सामाइयाइया वा वयजीवणिकायभावणा पढमं । एसो धम्मोवाओ जिणेहि सव्वेहि उवइट्ठो १९॥ २७१ ॥
गाथाद्वयमपीदं सूत्रसिद्धमेव ॥२७० ॥ २७१॥गतं धर्मोपायस्य देशका इति द्वारम् , इदानीं पर्यायद्वारप्रतिपादनायाहउसभस्स पुव्वलक्खं पुव्वंगुणमजिअस्स तं चेव । चउरंगूणं लक्खं पुणो पुणो जाव सुविहित्ति ॥ २७२ ॥ पणवीसं तु सहस्सा पुवाणं सीअलस्स परिआओ। लक्खाई इक्कवीसं सिजंसजिणस्स वासाणं ॥ २७३ ॥
चउपपणं १२ पण्णारस १३ तत्तो अद्धट्ठमाइ लक्खाइं१४॥ अड्डाइजाई १५ तऔं वाससहस्साई पणवीसं १६॥ २७४ ॥ तेवीसं च सहस्सा सयाणि अट्ठमाणि अ हवंति १७ ॥ इगवीसं च सहस्सा १८ वाससउणा य पणपण्णा १९ ॥ २७५ ।। अट्ठमा सहस्सा २० अड्डाइजा य २१ सत्त य सयाई २२। सयरी २३ बिचत्तवासा २४ दिक्खाकालो जिणिंदाणं ॥ २७६ ॥
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