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________________ ज्ञाताधर्मकथाङ्गम्. एकादशज्ञातविवरणम् । ॥१७॥ अथैकादशमं वित्रियते-अस्य पूर्वेण सहायं सम्बन्धः-पूर्वत्र च प्रमाद्यप्रमादिनोर्गुणहानिवृद्धिलक्षणावनायुक्तौ, इह तु |मार्गाराधनविराधनाभ्यां तावुच्यते इतिसम्बद्धमिदम् जति णं भंते ! दसमस्स नायज्झणस्स अयमढे एक्कारसमस्स के अटे०१, एवं खलु जंबू ! तेणं कालेणं २ रायगिहे गोयमे एवं वदासी-कह णं भंते ! जीवा आराहगा वा विराहगा वा भवंति ?, गो०! से जहा णामए एगंसि समुद्दकूलंसि दावद्दवा नाम रुक्खा पण्णत्ता किण्हा जाव निउरुंबभूया पत्तिया पुफिया फलिया हरियगरेरिजमाणा सिरीए अतीव उवसोभेमाणा २ चिट्ठति, जया णं दीविच्चगा ईसिं पुरेवाया पच्छावाया मंदावाया महावाया वायंति तदाणं बहवे दावद्दया रुक्खा पत्तिया जाव चिट्ठति अप्पेगतिया दावद्दवा रुक्खा जुन्ना झोडा परिसडियपंडुपत्तपुप्फफला सुक्करुक्खओ विव मिलायमाणा २ चिटुंति, एवामेव समणाउसो! जे अम्हं निग्गंथो वा निग्गंधी वा जाव पञ्चतिते समाणे बहणं समणाणं ४ सम्म सहति जाव अहियासेति बहूणं अण्णउत्थियाणं बहणं गिहत्थाणं नो सम्मं सहति जाव नो अहियासेति एस णं मए पुरिसे देसविराहए पण्णत्ते समणाउसो!। जया णं सामुद्दगा ईसिं पुरेवाया पच्छा aeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeroen ११दावद्रवज्ञाताध्य. स्वपरोभयानुभयो|क्तिसहने देशविराधनाराधनसाराधनविराधनाः ॥१७॥ dain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.600219
Book TitleGnatadharmkathangasutram
Original Sutra AuthorAbhaydevsuri
Author
PublisherAgamoday Samiti
Publication Year1919
Total Pages510
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript & agam_gyatadharmkatha
File Size10 MB
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