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श्रुतदेवी
स्तुति
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क्षेत्रदेवो
वा ४ नवकार काउस्सग्ग, पालके ज्ञानविशुद्धि निमित्त पुख्खरवर दोबढे वंदण. अन्नत्थ० १ लोगस्स वा ४ नवकार काउस्सम्ग, पालके सिद्धागं बुद्धाणं० मुअदेवयाए करेमि काउस्सग्गं अन्नत्थ०,१ नवकारका काउस्सग्ग, नमोऽर्हत थुइ सुवर्ण०,खित्तदेवयाए करेमि काउस्सग्गं अन्नत्थ०,१नवकारका काउस्सग्ग, नमोऽहंत्यासां० थुइ उपर नवकार १,छठे आवश्यककी मुहपत्ती पडिलेहे, २ वांदणा, इच्छामो अणुसष्टिं नमो खमासमणाणं नमोऽर्हत्०, बैठके नमोऽस्तु वर्द्धमानाय० नमुत्थुणं से नमोर्हत० तक स्तवन वडा कहे ॥ ___ सुवर्णसे, शोभित, दो। बारे अंगवाली, जिनसे उत्पन्न हुइ। श्रुतदेवो, सदा, मेरेकोसंपूर्ण श्रुत(ज्ञान)की,संपदाकुं ॥१॥
सुवर्ण,शालिनी, देयात्। द्वादशांगी, जिनोद्भवा॥ श्रुतदेवी, सदा,मह्यमशेष,श्रुत, संपदा ॥२॥ जिन्होंके, क्षेत्रमें,गत(रहे), हैं । साधु(तथा), श्रावक आदि। जिनआज्ञाकुं, साधते हुए, वे। रक्षा करो, क्षेत्र देवतायें ॥१॥ यासां,क्षेत्र, गताः,संति। साधवः,श्रावकादयः॥ जिनाज्ञां,साधयंत, स्ता। रक्षतु, क्षेत्र देवता:।।
विहारादिमें एक मकानसे दूसरे मकानमें जाय उस दिन बोलनेकी यह थुइ है। चार प्रकारके, संघको। देवी, मकानमें, रहनेवाली २ करके, पापोंको, यह। करो. मुखकुं, अक्षय ॥१॥ 'चतुर्वर्णाय,संघाय। देवी, भवन,वासिनी॥ निहत्य, दुरिता,न्येषा। करोतु, सुख, "मक्षतं॥१॥
पख्खी चोमासी संवच्छरीमें श्रुतदेवो भवनदेवो क्षेत्रदेवीकी ये थुइयां बोली जाती है। १ सोने जसी शरीरकी कांतिसे या अच्छे अक्षरोंसे !
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