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________________ अन्नत्थ० १ नवकार काउस्सग्ग, नमोऽर्हत् चोथी थुइ- सिद्धायिका देवी. वारे विघन विशेष, सह संकट चूरे, पूरे आश अशेष। अहो निश कर जोडी. सेवे सुरनर इंद, जंपे गुणगण इम.श्री जिनलाभ८० सूरिंद।४। नमुत्थुणं कहे अथवा उपर लिखी चार थुइकी जगह नीचे लिखी थुइयोंमेंसे कोइभी एक थुइ चार वेला बोलनीवीर कल्याण ते श्रेयरूपे मानियाए. माता बे कूखे महावीर तो। सर्व जिन जननी कूखे ए. आव्या कल्याण स्तुति ME कल्याण तिम धार तो॥भांखी जिन पडिमा पूजा ए.ऋतुवंती न पूजे देव तो। जिन पूजती ऋतुवंती थाय ए, पूजे न ते प्रभाविक देव तो ॥२॥ १ देवानंदाने प्रभु कुखमें आए कल्याण श्रेय माना स्वप्नहरणसे उदासीनतादि मोहसे हो उससे कल्याण श्रेयरूप गर्भका हरण वह त्रिशला कूखे संक्रामण गर्भपणे से धारण - अकल्याणरूप नहीं माना, जैसाकि वीर निर्वाणरूप कल्याण होनेसे नंदिवर्द्धन गौतमजी आदिको मोहसे दुःख उदासीनतादि हुआ उससे वीर निर्वाण अकल्याण नहीं माना । २ "पंच महाकल्लाणा (परम श्रेयांसि टीकामें), सव्वेसि जिणाण हवंति णियमेण । भुवणऽच्छेरयभूया, कल्लाणफला य जीवाणं । ३०" पंचाशक पत्र १५७, सब तीर्थंकरोंके पांच महाकल्याण श्रेय होते हैं अवश्य नियमसे जगतमें आश्चर्यरूप जीवोंको कल्याण फलवाले हो, इससे सब तीर्थंकरोंके च्यवन + अवतरण गर्भसंक्रमण गर्भधारण यह कुच्छ फरकसे झुदेजुदे नामसे एक महाकल्याण श्रेय शुभरूप ही नियमसे मानाहै,वैसा श्रीवीरका च्यवन अवतरण गर्भहरणही गर्भसंक्रामण के गर्भपणे धारण भी एक महाकल्याण श्रेयरूप ही मानाहै, अकल्याण अश्रेय अशुभ नहीं माना,और जन्म दीक्षा केवलज्ञान निर्वाण महाकल्याण माने गर्भनीच अपसद केना निंदाहै । For Personal Private Use Only
SR No.600211
Book TitlePanch Pratikraman Sutra
Original Sutra AuthorSiddhachal Kalyan Bhuvan tatha Surat
Author
PublisherSiddhachal Kalyan Bhuvan tatha SUrat Nava Upasarana Aradhak
Publication Year1933
Total Pages192
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript
File Size18 MB
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