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आहारं असणं पाणं खाइमं साइमं,अन्नत्थ ऽणाभोगेणं सहसागारेणं पच्छन्नकालेणं दिसामोहेणं साहु । वयणणं महत्तरागारेणं सव्व समाहि वत्तियागारेणं विगइओ निव्विगइयं(निधि)पच्चख्खा(इ)मि,अन्नत्थ
ऽणाभोगेणं सहसागारेणं लेवाऽलेवेणं (लेप अलेपसे) गिहत्थ संसठेणं (गृहस्थ संसृष्टसे २) नख्खित्त (उपर पडी . या उपर रखीको)विवेगेणं (त्यागनेसे३) पडुच्च (प्रतीति करके) मख्खिएणं(चोपडेसे ४) पारिठ्ठावणिया (परठवने योग्यके)
ऽऽगारेणं (आगार-छूट-से ") महत्तरागारेणं सव्व समाहिवत्तियागारेणं । *एगासणं (६ एकासणा) बियासणं है ( चियासणा) एगठ्ठाणं (८ एगठाणा) दत्तियं(परिमाण) पञ्चरुवा(इ)मि,तिविहंपि, आहारं, असणं खाइमं साइम
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+ बहुत विगइयां त्यागनेका यह पाठहै, परंतु एक विगइ त्यागर्नमें 'विगइयं बोलना । । त्यागी हुइ विगइके लेपवाली कुरछी-वाटकी आदिकु हायसे लूसके उससे दिया आहार
लेनेसे । २ गृहस्थने विगइसे थोडी (लेशमात्र) सरडी हुइ वाटकी या कुरछी आदिसे दिया आहार लेना (प्रव०पत्र ४५)।३ रोटी आदिके उपर रखे हुए मुक गुड सकर आदि 卐 उठानेपर उनका स्वाद जिसमें न रहा हो वैसी रोटी आदि लेनेसे। ४ बिल्कुल लूखेकी प्रतीति करके रोटी आदिक नरम रखनेके लिये पिघले घी या तेलकी अंगुलीसे के
बहुत कम चोपडी, अर्थात् चीकणाश बिल्कुल मालूम न पडे बैसी रोटी आदि लेनेसे। ५ वधारका आहार परठवना पडता हो तो उसमें अधिक दोष है और खालेनेमें ॥६६॥
आगमरीतिसे गुणका संभवहै, वास्ते वधा हुआ आहार गुरुआदिकी आज्ञासे खानेमें पचरूखाण भंग नहीं होता, ये पांच आगार साधुओके वास्ते ही है (प्रत्या० भा०पृ० ६२) THE *एकासणादि जो पचरूखाण करना हो वह पदवोलना दूसरे छोड देना । ६ स्थिरतासे एक आसनपर बैठके एकवेला जो खाना वह । ७ इसी तरह दो बेला खाना बह । ८ एकही जस्थानपर अंगोपांगका रखना है जिसमें अर्थात् मुख तथा हाथको छोडके सब अंगोपांग बैठते समय जैसे रखे पैसेही रखना जराभी नहीं हिलाना वह ४दुविहार ने चोविहार भी होसके
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