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यदंधि
स्तुति
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सुगंध, समुदायके, लोभसे, आसक्त हुए, चपल, भमरों की, श्रेणीवाले। सुंदर, कमलउपर रहने वाली, `हार (तथा) बरफको, हसती हुइ । नहींविरल, परिमल, भर, लोभा, ऽऽलीढ, लोला, लि, माला । वर, कमल, निवासे, हार नीहार, हासे । 'अविरल, संसार, कैदखानेका, विच्छेद करनेवाला । करो, कमलयुक्त, हाथवाली, मेरेलिये, मंगल, हेदेवि ! सारभूत |४| भव, कारागार, विच्छित्तिकारं । 'कुरु, कमल, करे, मे, मंगलं, देवि!, सारं ॥४॥
जिसके चरणको नमनेसेही । देहधारी (जीव), है, भलिस्थितिवाले । उस नमस्कार हो, वीर (प्रभु) को । सर्वविघ्नका, विघातकरनेवाले * यदंघ्रि, नमनादेव । देहिनः संति, सुस्थिताः । तस्मै, 'नमोऽस्तु, वीराय । सर्व, विघ्न, विघातिने 191 इंद्रने, नमेहुए, चरण युगवाले, ऋषभ जिनआदि, जिनपतिओंकुं नमताहूं । जिनके वचन, पालनेमें, तत्पर जीव । जलकी अंजलि, ॥१॥ सुरपति, नत, चरणयुगा, न्नाभेय जिनादि, जिनपतीन् नौमि ॥ यद्वचन, पालन, परा । जलांजलि, दो, दुःखोंसे |२| कहते हैं, वंदनकरनेवाले, समुदाय के आगे, तीर्थकर । सत्यअर्थसे, जो रचते हैं, सूत्रसे । गणके स्वामो (गणधर), ददतु, 'दुःखेभ्यः ॥ २ ॥ वदंति, बंदारु, गणाग्रतो, जिनाः । 'सदर्थतो, 'य, 'द्रचयंति, सूत्रतः ॥ गणाधिपा, होवो, ज्ञान, निश्चय, मुक्तिकेलिये |३| सौधर्मेंद्र, वैमानिक, भवनपतिदेव, वरों करके, ऽस्तु, मतं, "तु, मुक्तये ॥३॥ शक्रः, "सुरा, ऽसुर,
तीर्थ की स्थापना के समय में । वह प्राणीयोंको, "स्तीर्थ, समर्थन, क्षणे । तदं
गिनाम,
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वरैः,
१ मोतिका २ इनसे ज्यादा गौर वर्णवाली । ३अधिक इमें नित्य, पख्खी चोमासी संच्छरीके पहलेदिन और बिहारके दिन देवसीमें यह स्तुति बोली जाती है । ४ चतुर्विध संघ
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