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________________ ४७ यदंधि स्तुति फ्र! सुगंध, समुदायके, लोभसे, आसक्त हुए, चपल, भमरों की, श्रेणीवाले। सुंदर, कमलउपर रहने वाली, `हार (तथा) बरफको, हसती हुइ । नहींविरल, परिमल, भर, लोभा, ऽऽलीढ, लोला, लि, माला । वर, कमल, निवासे, हार नीहार, हासे । 'अविरल, संसार, कैदखानेका, विच्छेद करनेवाला । करो, कमलयुक्त, हाथवाली, मेरेलिये, मंगल, हेदेवि ! सारभूत |४| भव, कारागार, विच्छित्तिकारं । 'कुरु, कमल, करे, मे, मंगलं, देवि!, सारं ॥४॥ जिसके चरणको नमनेसेही । देहधारी (जीव), है, भलिस्थितिवाले । उस नमस्कार हो, वीर (प्रभु) को । सर्वविघ्नका, विघातकरनेवाले * यदंघ्रि, नमनादेव । देहिनः संति, सुस्थिताः । तस्मै, 'नमोऽस्तु, वीराय । सर्व, विघ्न, विघातिने 191 इंद्रने, नमेहुए, चरण युगवाले, ऋषभ जिनआदि, जिनपतिओंकुं नमताहूं । जिनके वचन, पालनेमें, तत्पर जीव । जलकी अंजलि, ॥१॥ सुरपति, नत, चरणयुगा, न्नाभेय जिनादि, जिनपतीन् नौमि ॥ यद्वचन, पालन, परा । जलांजलि, दो, दुःखोंसे |२| कहते हैं, वंदनकरनेवाले, समुदाय के आगे, तीर्थकर । सत्यअर्थसे, जो रचते हैं, सूत्रसे । गणके स्वामो (गणधर), ददतु, 'दुःखेभ्यः ॥ २ ॥ वदंति, बंदारु, गणाग्रतो, जिनाः । 'सदर्थतो, 'य, 'द्रचयंति, सूत्रतः ॥ गणाधिपा, होवो, ज्ञान, निश्चय, मुक्तिकेलिये |३| सौधर्मेंद्र, वैमानिक, भवनपतिदेव, वरों करके, ऽस्तु, मतं, "तु, मुक्तये ॥३॥ शक्रः, "सुरा, ऽसुर, तीर्थ की स्थापना के समय में । वह प्राणीयोंको, "स्तीर्थ, समर्थन, क्षणे । तदं गिनाम, १३ वरैः, १ मोतिका २ इनसे ज्यादा गौर वर्णवाली । ३अधिक इमें नित्य, पख्खी चोमासी संच्छरीके पहलेदिन और बिहारके दिन देवसीमें यह स्तुति बोली जाती है । ४ चतुर्विध संघ Jain Education International For Personal & Private Use Only ||२४|| www.jninelibrary.org
SR No.600211
Book TitlePanch Pratikraman Sutra
Original Sutra AuthorSiddhachal Kalyan Bhuvan tatha Surat
Author
PublisherSiddhachal Kalyan Bhuvan tatha SUrat Nava Upasarana Aradhak
Publication Year1933
Total Pages192
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript
File Size18 MB
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