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________________ 15555555 आकुलव्याकुलतासे,स्वप्ननिमित्तवाली विराधनासे.स्त्रीविपर्यास(स्वममें कुशोलसेवनादि)से,दृष्टिविपर्यास(स्त्रोमेरागनजर)से, मनकेविपर्यासआनलमानलाए. सोअण वत्तिआए, इत्थी विप्परिआसिआए दिठ्ठी विपरिआसिआए मणविप्परि(मनोविकार)से,पाणी भोजनके,विपर्यास(रात्रिमें खानेपीनेकी इच्छा)से,जो,मैंने रात्रिसंबंधी,अतिचार,कियाहो,उसका मिथ्याहो,मेरे, दुष्कृत(पाप) । आसिआए.पाणभोअण, विप्परिआसिआए, जो,मे,*राइओ,अइआरोकओ,तस्स,मिच्छा,मि.दुक्कडं पीछाहटताहूं, गौके चरणेकी रीतिवाली,भिक्षाचर्या में(लगेदोषोंसे),थोडेउघडे,कमाड, उघाडनेसे, श्वान(कुत्ते),वाछरडे,स्त्री बच्चेकुं, संघटनेसे, पडिकमामिगोअरचरिआए.भिख्खायरिआए नग्घाड,कवाड,नग्घाडणाए.साणा वच्छा,दारा,संघट्टणाए. मंडिपाभूतिकासे२, बलिपाभृतिकासे३, स्थापना प्राभृतिकासे, शंकावालीसे,उतावलकरके', (दोपोंकी)विनातलाशीस,प्राणीवाले भोजनसे, मंडी पाहुडिआए,बलिपाहुडिआए.ठवणा पाहुडिआए.संकिए, सहसागारे, अणेसणाए. पाणभोअणाए. बीजवाले भोजनसे, लीलोतरीवालेभोजनसे, पश्चात्कर्मसे, पुरः(पूर्व)कर्मसे,नहीं देखो चीज लाइलेनेसे,पाणीके संबंधवालीलानेसे, बीअ भोअणाए, हरिअभोअणाए, पच्छाकम्मियाए,पुरेकम्मियाए, अदिठ्ठ हटाए, दग संसठ्ठ हडाए, ज॥३९॥ 55551 १ खी भोगादि वीवाहादि युद्धादि जंजालसे । २ उपरका अन्न हटाके या अन्य वर्तनमें निकालके देवे । ३ दिशाओमें या अग्निमें बलि (जेति आहुति) नांखके देवे । ४ साधुके निमित्त स्थापन करके रखी लेनेसे 1 x आधाकर्मादि दोषकी । ५ अशुद्ध भिक्षालेनेसे । ६ वहोगए पीछे या पहले कच्चे पाणीसे हाथ धोना आदि । * देखो पृष्ट ३७ में। Jain Education n ational For Personal Private Use Only www.ininelibrary.org
SR No.600211
Book TitlePanch Pratikraman Sutra
Original Sutra AuthorSiddhachal Kalyan Bhuvan tatha Surat
Author
PublisherSiddhachal Kalyan Bhuvan tatha SUrat Nava Upasarana Aradhak
Publication Year1933
Total Pages192
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript
File Size18 MB
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