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सात
लाख
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पेसतां निसीहिं नीसरतां आवस्सई कहेवी विसारी, पुढवी अप तेउ वाउ वनस्पति त्रसकाय तणा संघट्टा हुआ. अष्ट प्रवचनमाता रूडिरीते पाली नहीं, जे कोइ खंडन विराधना हुइ होय ते सवि हु मन वचन कायाए करी तस्स मिच्छामि दुक्कडं ॥
आजके चार प्रहर दिवसमें 'जे मे जीव विराध्या होय - सात लाख पृथिवीकाय, सात लाख 'अप्पकाय,सात लाख तेन काय सात लाख 'वाउकाय, दश लाख प्रत्येक वनस्पति काय, चउदे लाख साधारण वनस्पति काय, दोय लाख बेइंद्रिय, दोय लाख तेइंदिय दोय लाख चोरिंद्रिय, चार लाख देवता, चार लाख नारकी, चार लाख तिर्यंच पंचेंद्रिय, चउदे लाख मनुष्य, एवं चार गतिके चोराशी लाख जीवायोनिमें महारे जीवे जे कोइ जीव हण्यो होय,
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१ सर्वेर 'रात्रिमें' बोलना । २ पाणिरूप कायावाले जीव । ३ अग्नि! ४ पवन०। ५ थड मूल पत्ते आदिमें जुटे जुदे जीववाले वृक्षादि। ६ अंगुलके असंख्यातमें 卐 भाग प्रमाण एकही छोटे शरीरमें अनंते जीव रहे वैसे कंदमूलादि। ७ योनि नाम जीवोंके उपजनेका स्थान, वे ८४ लाख स्थान यो तो गिनतीसे बहुत ज्यादाहै. परंतु
वर्ण (रूप), रस, गंध, स्पर्शसे समानतावाले अनेकों को भी एक मानके ८४ लाख जीवा जोनि कहींहै,जसे ७ लाख पृथिवीवायके लाख दीठ ५०) तो मूलभेद ३५०) ७ 卐 लाखके होतेहै, उनको पांच वर्णसे गुणने पर १७५०) होतेहै. उनको दो गंधसे गुणने पर ३५००) हए, उनको पांच रसोंके साथ गुणनेसे १७५००) हुए, उनको आठ जफरसके साथ गुणनेसे १४००००) हुए, इनको पांच संठाणसे गुणने पर सात लाख भेद पृथिवीकायके होतेहै, इसीतरह लाख दीठ ५० लेनेसे सबकी गिनती समझ लेना।
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