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________________ ठाणे कमणे Jain Educat खंडन विराधना हुइ होय, ते सवि हु मन वचन कायाए करी तस्स मिच्छामि दुक्कडं । बैठने में चलने में घूमने में, उपयोगसे, (या) विनाउपयोगसे, हरितकायको र, संघट्टा (अडा) हो, बीजकायको, संघट्टा हो, ठाणे, कमणे, चंकमणे, आउत्ते, अणाउते, हरियक्काय, संघट्टे, बीयक्काय, संघट्टे, सकायको५, संघट्टाहो, यावर काय को, संघट्टाहो, पट्पदिकको, संघट्टाहो, (इनकुं) स्थान से, स्थानमें, संक्रामे ( रखे ) हो । सकाय, संघट्टे, थावरकाय संघट्टे छप्पइय, संघट्टे, ठाणाओ, ठाणं, संकामिया । देहरे उपासरे ठल्ले मातरे जातां आवतां नीलफूल खुंदी होय, हरियक्काय तणा संघट्टा हुआ होय, जिनभवन तणी चोरासी आशातना - गुरु प्रत्ये तेत्रीस आशातना कीधी, पर पाखंडी परिचय की, उत्सूत्र परूपणा कीधी, ओघा मुहपत्ती चोलपट्टा संघट्टीया, पुरुष स्त्री तिर्यंच तणा संघट्टा परंपर निरंतर हुआ, उघाडे मुखे बोल्या, ऊंघ आवी, विकथा कीधी, गौचरीतणा दूषण साचव्या नहीं, आर्त रौद्रध्यानध्याया, धर्मध्यान शुक्लध्यान ध्याया नहीं, कुविकल्प चिंतव्या, 'अणुजाणह जस्स गो' को नहीं, परठव्या पूठे वार त्रण वोसिरे वोसिरे को नहीं, देहरा उपासरा मांहिं या खड़े रहने में । २ इधर उधर । ३ लीलोतरी । ४ धान्यादि । ५ बेइंद्रियादि । ६ पृथ्वी-पाणी आदि । ७छ पगवाले जू भमरे आदि । ८ एक जगहसे दूसरी जगहमें । national For Personal & Private Use Only ||३३||
SR No.600211
Book TitlePanch Pratikraman Sutra
Original Sutra AuthorSiddhachal Kalyan Bhuvan tatha Surat
Author
PublisherSiddhachal Kalyan Bhuvan tatha SUrat Nava Upasarana Aradhak
Publication Year1933
Total Pages192
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript
File Size18 MB
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