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________________ फफफफफफफफफ १३७ कहके । नवकारका काउस्सम्ग करे, पारके प्रगट नवकार १ कहे। खमा० देके अविधि आशातना खमावे । चैत्री का चैत्र मुदि १० के वाद ११से १३ तक या १२से १४ तक अथवा १३ से १५ तक लगोलग तीन दिन देवसी पडिक्कमणके बाद उस्मग्ग +खमा० देके 'इच्छा० संदि० भग! सचित्त अचित्तरज ओहडावणत्थं काउस्सग्ग करूं?, इच्छं सचित्त अचित्तरज ओहडावणत्यं करेमि काउस्सगं अन्नत्थ०' कहके ४ लोगस्सका काउस्सग्ग करे, पारके प्रगट लोगस्स कहे। सज्झाय कार्तिक वदि तथा वैशाख वदि एकमके बाद जिसदिन अश्विनी. भरणी. रोहिणी. आा. पुष्य. अश्लेषा. मघा. पूर्वाफाल्गुनी. उत्क्षेप हस्त. स्वाति. अनुराधा. मूल, पूर्वाषाढा. श्रवण, शतभिषक. उत्तराभाद्रपद. तथा रेवतो. इनमें से कोइभी नक्षत्र होवे. और गुरुवार विधि या सोमवार होवे उस दिन, अथवा मंगलवार और शनिवारकुं छोडके चाहे जिसवारके दिन कपडे धोकर उपासरेमेंसे काजा म निकालके परठे, और वसति संशोधन करे, जो कोइ हाडका या कलेवर होवे उसको दूर हटवाके उपासरेमें आकर सब जणे इरियावहि पडिक्कमे, बादमें वसति संशोधन करनेवाला खमा० देके कहे 'इच्छा० संदि० भग०! वसति पवे?' गुरु कहे 'पवेयह । - इच्छं इच्छामि खमा० देके कहे 'भगवन् ! सुद्धावसहि' गुरु कहे 'तहत्ति'। सब जणे खमा० देके 'इच्छा. संदि० भग० ! ॐ मुहपत्ति पडिलेहूं ? इच्छं' कहके मुहपत्ति पडिलेहके वांदणे देवे, खमा० देके 'इच्छा संदि० भग०! छम्मासियकप्पसंदिसाउं!' इच्छं + इच्छामि खमा० 'इच्छा० संदि० भग०! छम्मासियकप्पपडिग्गहूं ?' इच्छं इच्छामि खमा० 'इच्छा० संदि० भग! सज्झाय उख्खि वणऽत्थं मुहपत्तिपडिलेहूं ? इच्छं' कहकर मुहपत्ति पडिलेहके चांदणे देवे, खमा० देके कहे 'इच्छा० संदि० भग०! सज्झाय सख्खिवू?' गुरू कहे 'उख्खिवह' इच्छं कहके फिर खमा० देके कहे 'इच्छा. संदि० भग०! सज्झाय उख्खिवणऽत्थं काउस्सग्ग + करूं?' गुरु कहे 'करेह' बाद 'इच्छं सज्झाय उवरिखवणत्थं करेमि काउस्सग्गं अन्नत्थ०' कहके १ नवकार अथवा ' लोगस्सका 555555555 Jain Education International For Personal Private Use Only wrunw.ininelibrary.org
SR No.600211
Book TitlePanch Pratikraman Sutra
Original Sutra AuthorSiddhachal Kalyan Bhuvan tatha Surat
Author
PublisherSiddhachal Kalyan Bhuvan tatha SUrat Nava Upasarana Aradhak
Publication Year1933
Total Pages192
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript
File Size18 MB
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