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________________ कंवल,अथवा,पादोंछन(ओघारिया),अथवा,रजोहरण(ओघा),या, अक्षर, अथवा,पद,अथवा,गाथा,या, श्लोक, अथवा,श्लोकका आधा(भाग), कंबलं,वा, पायपुंछणं वा, रयहरणं, वा,अख्खरं,वा,पयं,वा,गाहं,वा,सिलोग,वा, सिलोगऽद्धं, या, अर्थ,अथवा, हेतु, या, प्रश्न, अथवा, उत्तर(ये सव), आपने, प्रीतिसे,(मुझे दिये, मैंने, अविनयसे, ग्रहण कियेहो, उसका, वा,अठं, वा,हेनं,वा,पसिणं,वा,वागरणं वा,तु भेहि,चियत्तेण, दिन्नं,मए, अविणएण,पडिच्छियं, तस्स, मिथ्याहो मेरे, दुष्कृत। गुरु कहे-आचार्य संबधीहै ,ऐसा ।।, ये सब चीजें गुरु महागजकीहै,मेरा कुछ नहीं है, ऐसा कहना अहंकारका त्याग और गुरुभक्तिसेहै । छछामि.दक्क।। आयरियसंतियं.ति || २ आवते कालमें वेयावच्च आदि करना। ३ ज्ञानाचारादि पांच । ४ आपने स्वयं मुझे ।। इच्छताहूं, हे क्षमाश्रमण (गुरो)!. मैं, अपूर्व,(पहले)कियेहुर, और,मैने,कृतिकर्म(वे यावच्चआदि)में, ३ आचारकीहीनता होनेपर,विनयहिनता इच्छामि, 'खमासमणो!,अह,मपुव्वाइं, कयाइं.च, मे, "किइकम्माइं. आयारमंतरे, विणयहोनेपर, शिक्षादीहै, शिक्षादिलाई, (शिष्यपणे)संग्रहाहै.उपगृहीतकिया,हितमें प्रवर्ताया,अहितसे निवारा,(संयममें)प्रेरा,वारंवार प्रेरा,प्रियहै(वास्ते), 5 मंतरे.सहिओ,सेहाविओ, संगहिओ,नवग्गहिओ,सारिओ, वारिओ, चोइओ,पडिचोइओ, चियत्ता, मुझे,वारंवारकी प्रेरणा, उपस्थितहुभा, मैं, आपके, तपस्तेजकी, लक्ष्मीसे, इस, चार अंतवाले, संसाररूपी, वनसे, संहरके, मे, 'पडिचोयणा, नवठिओ,ऽहं.तुमभण्हं.तवतेय,सिरीए,"इमाओ,चानरंत, संसार,कंताराओ, साहटु ५ वच-पात्र तथा ज्ञानादि देके आश्रय दिया । ६ जिसमें आपने प्रेरणा करी उस आचारादिकुं प्राप्त करनेके लिये। ७ नरकादि गतियोंके भेदसे। ८ कषापादिकु दूर करके २७०॥ Jain Education international For Personal Private Use Only
SR No.600211
Book TitlePanch Pratikraman Sutra
Original Sutra AuthorSiddhachal Kalyan Bhuvan tatha Surat
Author
PublisherSiddhachal Kalyan Bhuvan tatha SUrat Nava Upasarana Aradhak
Publication Year1933
Total Pages192
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript
File Size18 MB
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