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________________ इच्छताहं, हेक्षपाश्रमण(गुरो) :.(विहारसे)पहले, चैत्यों[जिनविंयो]को,वंदनकरके,नमस्कार करके,आपके चरणोंकेरल में, विचरते हुए मैने इच्छामि. खमासमणो!, 'पुट्विं, चेइयाई, वंदित्ता,नमंसित्ता,तुभिण्ड,पायमूले,विहरमाणेणं,जे. कोड. बहतदिनोंके दीक्षावाले, साधु, देखे(उनमेंसे), स्थिर रहे हुए,अथवा,मासकल्पादि वसे हुए,या,एक गामसे दूसरे गाम, विहार करते हुए, के. बहदेवसिया, साहुणो, दिठ्ठा, समाणा, वा, वसमाणा. वा, गामाणुगाम, दुइज्जमाणा वा. दीक्षा मोटे(आचार्य, आपका)कुशल पूछते हैं,दीक्षामें छोटे(आचार्य, आपको) गंदते, साधु, वांदते हैं, साथीयें, वांदती, श्रावक रायणिया, संपुच्छंति, ओमरायणिया, वंदति, अज्जया.वंदति,अजियाओ,वंदंति. सावया, वांदतेहैं, श्राधिकायें, वांदतीहैं. मैं भी, शल्यरहितहूं, कपायरहितहूं, इसवास्ते, शिसे, मन(भाव)पे,मस्तक (नया)करके,बांदताहूं । वंति,सावियाओ,वंदंति, अहंपि,निस्सल्लो.निक्कसाओ. तिकटु,सिरसा, मणसा, मत्थएण, वंदामि। भी(आपको), बंदाताहूं, चैत्य(जिनविय) । गुरुकहे मस्तककरके,वांदताहूं, में भी उन(चे यादि)कुं। मेरे काम में आती अहमवि, वंदावमि,चेइयाई मत्थएण,वंदामि,अहंपि, तेसिं। आपकी ही है वास्ते । ५ कल्पे वैसा। | छताहूं, हे क्षमाश्रमण(गुर) :, उपस्थित (तयार)हुआहूं कि- आपके.संबंधी, यथाइल्प्य',चाहे, वस्त्र, अथवा,पतद्ग्रह (पात्रा),अथवा, के, ॥१६९।। 'इच्छामि, खमासमणो!, उाठिओह-तुभिण्हं, संतियं,अहाकप्पं,वा,वार्थ, वा, पडिग्गहं, वा, अशक्तिआदिके कारण एक गाममें । मैंने जिन चैत्यों को आपकी तरफसे वादे है.उनकुं आपभी वांदो। x किसी पुस्तकने इसको गुरुका वचन लिखाहै ।इमैं आपके आगे निवेदन करनेको । 15555555554 Jain Education n ational For Personal & Private Use Only Ininelibrary.org
SR No.600211
Book TitlePanch Pratikraman Sutra
Original Sutra AuthorSiddhachal Kalyan Bhuvan tatha Surat
Author
PublisherSiddhachal Kalyan Bhuvan tatha SUrat Nava Upasarana Aradhak
Publication Year1933
Total Pages192
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript
File Size18 MB
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