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________________ 5 555 ( 'मटके स्थानोकुं । अठु य कम्माई(कर्मोकुतेसिं(उनके बंधविधकुं च। परिवतो गुत्तो, रग्ब्खामि महत्वाए पंच ।३६। अठ्ठ य पवयण माया (प्रवचन माताकुं),दिठ्ठा (देखीहुइ) अविह (आठ प्रकारके) निठिय (नष्टहुए) “उठेहिं अर्थ कर्मरूप वस्तुवाले तीर्थंकरोंन)। नवसंपन्नो जुत्तो.रख्खामि महव्वए पंच।३७। नव(नव)पाव [पापवे] नियाणाई नियाणोंकु ,संसारत्था संसारमें रहे]य नवविहा नव प्रकारके"] जीया (जीवोंकुं)। परिवज्जतो गुत्तो, रख्वामि महब्बएपंच।३८। नवा नववाड युक्त बंभचेर[वह वर्गमे]गुत्तो(रक्षित हुअा).दुनवविहं दो नव ५.८पकारके) बंभचेर (ब्रह्मचर्य कुं परिसुहं (सबतरह शुद्ध)। नवसंपन्नो जुत्तो, रख्खामि महव्वए पंच १३९। नवधायं PF (उपयातकुं च दसविहं (दश प्रकारके), असंवरं (आश्रवकुं) तहय(वैसेही)संकिलेसं संक्लेश असमाधिकुं च । परि वजंतो गत्तो. रख्खामि महव्यए पंच।४०। सच्च सत्य समाहिठाणे (समाधि स्थानों° 1),दस (दश चव להלהללהלהלהלהבובלהרוכותבתצורתלתלתלהבה 14 जाति-लाभादि : २ ज्ञानावणीवादि। पांच समिति तीन गुप्ति। । इस भवमे आगधे चारित्रादिसे भवांतर में गजा-दो दिपदको प्राप्त होनेका निथय ५ पृधिव्यादि पांच स्थावर तथा वेददिवादि चार प्रस। औदारिक तथा वैकिय मथुनको मन-वचन-कायासे करना-कराना अनुमोदना नहीं। ७ उद्गम-उत्पादना और एषणाके दोष लगाना, एवं वखादि उपकरणों की सफाइ रखना, इत्यादि दश आचरण संयमकं घान करनेवाले । ८ पांचों इंद्रियोंको तथा मन वचन-कायाको निजनिज विषयोंसे न गेकना, 1 प्रमाणस अधिक या अकल्य वस्त्रादि लेना, मुंह आदि शरू रखना। ५ वादि उपकरण उपाश्रय-भाडागदिके निमित्तम असमाधि करना। १० दश सत्यादि । 11 स्त्री-पशु-मयकादिके संसर्ग हित उपाश्रय लेना आदि। 555555555555 १०८॥ Jain Education r ational For Personal Private Use Only urunm.ininelibrary.org
SR No.600211
Book TitlePanch Pratikraman Sutra
Original Sutra AuthorSiddhachal Kalyan Bhuvan tatha Surat
Author
PublisherSiddhachal Kalyan Bhuvan tatha SUrat Nava Upasarana Aradhak
Publication Year1933
Total Pages192
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript
File Size18 MB
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