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( 'मटके स्थानोकुं । अठु य कम्माई(कर्मोकुतेसिं(उनके बंधविधकुं च। परिवतो गुत्तो, रग्ब्खामि महत्वाए पंच ।३६। अठ्ठ य पवयण माया (प्रवचन माताकुं),दिठ्ठा (देखीहुइ) अविह (आठ प्रकारके) निठिय (नष्टहुए) “उठेहिं अर्थ कर्मरूप वस्तुवाले तीर्थंकरोंन)। नवसंपन्नो जुत्तो.रख्खामि महव्वए पंच।३७। नव(नव)पाव [पापवे] नियाणाई नियाणोंकु ,संसारत्था संसारमें रहे]य नवविहा नव प्रकारके"] जीया (जीवोंकुं)। परिवज्जतो गुत्तो, रख्वामि महब्बएपंच।३८। नवा नववाड युक्त बंभचेर[वह वर्गमे]गुत्तो(रक्षित हुअा).दुनवविहं दो नव ५.८पकारके)
बंभचेर (ब्रह्मचर्य कुं परिसुहं (सबतरह शुद्ध)। नवसंपन्नो जुत्तो, रख्खामि महव्वए पंच १३९। नवधायं PF (उपयातकुं च दसविहं (दश प्रकारके), असंवरं (आश्रवकुं) तहय(वैसेही)संकिलेसं संक्लेश असमाधिकुं च । परि
वजंतो गत्तो. रख्खामि महव्यए पंच।४०। सच्च सत्य समाहिठाणे (समाधि स्थानों° 1),दस (दश चव
להלהללהלהלהלהבובלהרוכותבתצורתלתלתלהבה
14 जाति-लाभादि : २ ज्ञानावणीवादि। पांच समिति तीन गुप्ति। । इस भवमे आगधे चारित्रादिसे भवांतर में गजा-दो दिपदको प्राप्त होनेका निथय ५ पृधिव्यादि
पांच स्थावर तथा वेददिवादि चार प्रस। औदारिक तथा वैकिय मथुनको मन-वचन-कायासे करना-कराना अनुमोदना नहीं। ७ उद्गम-उत्पादना और एषणाके दोष
लगाना, एवं वखादि उपकरणों की सफाइ रखना, इत्यादि दश आचरण संयमकं घान करनेवाले । ८ पांचों इंद्रियोंको तथा मन वचन-कायाको निजनिज विषयोंसे न गेकना, 1 प्रमाणस अधिक या अकल्य वस्त्रादि लेना, मुंह आदि शरू रखना। ५ वादि उपकरण उपाश्रय-भाडागदिके निमित्तम असमाधि करना। १० दश सत्यादि ।
11 स्त्री-पशु-मयकादिके संसर्ग हित उपाश्रय लेना आदि।
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