________________
595555555फ
विभूषा कीधी, अकल्पनीय पिंडादि विषइओ अनेरो जे कोइ० ।। को आवस्सय सज्झाए,पडिलेहण झाण भिख्ख अभत्तठे।आगमणे नीगमणे,ठाणे निसीअणेतुअर्टेश में आवश्यक नभयकाल व्याक्षिप्त चित्तपणे पडिक्कमणो कीधो,पडिक्कमणामांहिं ऊंघ आवी,बेठां पडि
कमणो कीयो।दिवस प्रते चारवार सज्झाय सातवार चैत्यवंदन न कीधा । पडिलेहण आघी पाछी है भगावी, अस्तोव्यस्त कीधी। आर्त रौद्र ध्यान ध्यायां,धर्म ध्यान शुक्ल ध्यान ध्यायां नहीं। गोचरी'
गया बेतालीस दोष नपजता चिंतव्या नहीं। जाणी छती शक्तिए पर्व तिथिए उपवासादिक तप
कीधो नहीं। देहरा नपासरामांहिं पेसतांनिसिही.नीसरतां आवस्सइ कहेवी विसारी।इच्छा मिच्छा#दिक दशविध चक्रवाल समाचारीसाचवी नहीं,गुरु तणो वचन तहत्ति करी पडिवज्यो नहीं,अपराध
आव्यां मिच्छामि दुक्कडं दीधा नहीं। स्थानके रहेतां हरियकाय बीयकाय कीडीतणा नगरां सोध्यां
155555555555555555555555
१३॥
(सांझ-सवेर) दोनो वख्त । २ डामाडोल। ३ सवेरे पडिलेणके बाद १, संध्याको पडिलेहणके बीच, २, देवसिय पडिामणेके अंतमें अथवा पचख्खाग पारनेकी ३.गइय पडिकमणेके शुरुकी ४ । ४ गइव पडिकमणेकी शुरुका १, परसनयतिभिरतरणिका २ मंदिर दर्शनका ३.पचख्खाण पारनेका ४,आहार पाणीके वादका ५. देवसिय पडिक्कमणेकी शुरुका अथवा 'नमोऽस्तुबमानायका ६.संथारा पोरिसीका ७।५करी न करी ऐसे बिना ढंगसे। ६ आगेकी चिंता। ७ दूसरेके उपर मारने पीटने आदिके परिणाम । ८ स्वीकारा ।
Jain Education international
For Personal Private Use Only
www.jainelibrary.org