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वारंवार २८ नाराचक छंद । उन, मैं, जिनचंद्रकुं। अजितनाथ, जीतेहुएमोहवाले । नष्टहुएहै, सब क्लेशजिनके। आदरसे, पुणोपुणो॥२८॥ नारायओ।तम, ऽहं, जिणचंदं। अजिअं, 'जिअमोहं॥ धुय, सव्वकिलेसं। पयओ, प्रणाम करताहूं।२१॥ नंदितक छंद । स्तवेगये,(और)वांदेगये,ऋषि(मुनि)गण,(तथा)देवसमूहसे । बादमें,देवांगनाओंसे,आदरपूर्वक,प्रणामकियेगये पणमामि॥२९॥ नंदिअयं। १ थुअवंदिअस्सा, रिसिगण,देवगणेहि। तो,देववहुहि,पयओ,पणमिअस्सा जास्यके ,जगत्में उत्तम, शासनवाले। भक्तिके, वशसे, आइहुई, एकत्रमिलीहुई । देवोंकी, उत्तम,अप्सरा(देवी)ओंने, बहुत। देवोंके,
जस्स, जगुत्तम,सासणअस्ता।'भत्ति,वसा,ऽऽगय,पिंडिअयाहिं। देव,वर, ऽच्छरसा, बहुआहिं। सुर, उत्तम,रति(क्रीडा),गुणमें,पंडिता(चतुरा) ऐसी ।३०। भामुरक छंद ।वांसलीके,शब्द,वीणा(तथा),तालोंसे,मिलेहुए । त्रिपुष्कर के, मनोहर, के वर, रइ, गुण, पंडिअयाहिं॥३०॥ भासुरयं। "वंस, सद्द, तंति, ताल,मेलिए।तिनख्खरा,ऽभिराम, शब्दोंसे, मिश्रित,कियाहुआ,तथा। श्रुति(कान)को,सुखदायक,और,शुद्धषड्ज(स्वर)के,गीत(तथा),पगोंमें,जालीवाली, धुंबरोओंसे । कडे (तथा), सह. मीसए, कए, अ॥ "सुइ, समाणणे,अ, सुसज्ज. गीय, पाय, जाल, घंटिआहिं। वलय, मेखलाओंके ३,समुदाय(और),ज्ञांझरके,मनोहर,शब्दोंसे, मिश्रित,किया,और। देवनटवीओंने, हाव, भाव, विभ्रमके, प्रकारोंवाले, मेहला, कलाव,नेनरा,ऽभिराम,सह,मीसए,कए, । देवनट्टिआहिं.हाव,भाव.विश्भम,प्पगारएहि, 12.१२|| x ३०मी तथा ३१मी इन दोनुं गाथाके अन्वयांक शामिल है। १ मोक्षके योग्य । २ नामके वाजिंत्र । ३ कमरके कदोगेंके । ४ ऐसा नाटक शुरु करनेपर ।
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