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जयउ सामिय १०
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अरिष्टनेमिकं, पार्श्वनाथकं, तथा, बर्द्धमान स्वामीकुं, फेर |४| इसतरह, मैंने, स्तवेहुए । क्षय हुए है, कर्म, मैल निणोंके । (तथा) नाशहुए है, जरा, 'रिनेमिं, पासं, तह वडमाणं च ॥४॥ एवं, मए, अभिथुआ । विहुय, रय, मला । पहीण, जर, मरण जिणोंके। चोविसोंभी, जिनवरदेव । तोर्थके करनेवाले मेरे उपर, प्रसन्नहो । ५ । कीर्त्तना किये हुए वादे हुए, पूजेहुए। जो, थे, लोकमें, मरणा ॥ चउवी संपि, जिणवरा । तिथ्थयरा, मे, पसीयंतु ॥५॥ कित्तिय, वंदिय, पहिया । जे. ए. लोगस्स, उत्तम, सिद्धहैं। (वे मुझे) आरोग्य, बोधिकेरे, लाभकुं । समाधिके, वरकुं, उत्तम, दो । ६ । चंद्रोसे, विशेष निर्मल । सूथोंसे, उत्तमा, सिद्धा ॥ आरुग्ग, बोहि, लाभं । समाहि, वर, मुत्तमं दिंतु ॥६॥ ' चं देसु, निम्मलयरा। आइचेसु, अधिक, प्रकाश करनेवाले । ४ उत्तम समुद्रसमान, गंभीर । सिद्धभगवान्, सिद्धि (मोक्ष), मुझे, दो । ७ । अहियं, पयासयरा ॥ सागर वर, गंभिरा | सिद्धा, सिद्धिं मम, दिसंतु ॥७॥
जयवंतेवर्तो, स्वामी !, जयवंतेवत हेस्वामी !, ऋषभदेव, शत्रुंजय उपर रहे, उज्जयंत उपर रहे, हे प्रभु, नेमिजिन!, जयवंतेवत, हेवीरप्रभो !, जय,'सामिय!, 'जयउ, सामिय!, 'रिसह, "सतंज, 'उजिंत, पहु, नेमिजिण!, "जयउ 'वीर ! साचोरके, मंडन, भरूचमें रहे, हेमुनिसुव्रतस्वामी !, 'मुहरिमें रहे, हे पार्श्वप्रभो !, दुःख, पापका नाश करनेवाले, दूसरे, पांचमहाविदेहमें रहे, 'सच्चाउरि, मंडण, "भरुअच्छहिं, मुणिसुव्वय!, मुहरि, पास !, दुह, दुरिय, खंडण, "अवर, विदेहिं
१. बुढापा २ चतुर्विध संघ स्थापन ३ समकित ४ समुद्रों में उत्तम स्वयंभुरमण' नामका छेला समुद्र । ५ टीटोइ गाममे ।
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