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________________ वेष्टक छंद । जिस,देवसमुदाय, सहित, अमुरकुमारोंके गण, वैर रहित, भक्तिमें अच्छेजुडेहुए । आदरसे,भूपितहुए, संभ्रमसे, भेलेहुए, वेड्ढओ।ज, सुरसंघा, सा, ३ऽसुरसंघा, 'वेरविनत्ता, भत्तिसुजुत्ता। 'आयर,भूसिय,संभम, पिंडिअ, अित्यंत, आश्चर्ययुक्त, सब, बल समूहवाले । उत्तम,कंचन(सोने),रत्नोंसे,प्रकाशवान् ,देदीप्यमान,आभूषणोंसे,शोभायमान,अंगवाले। शरीरसे, सुछु,सुविम्हिअ,सव्व, बलोघा ॥ उत्तम, कंचण, रयण,परूविय, भासुर, भूसण,भासुरि,अंगा। गाय, नमेहुए, भक्तिके,वशसे, आयेहुए, हाथ जोडके,कियेहुए,मस्तकसे,प्रणामवाले ॥२३॥ रत्नमाला छंद। वंदन करके, स्तवनकरके, बादमें, समोणय,भत्ति,वसा,ऽऽगय, पंजलि,पेसिय, सीस,पणामा॥२३॥रयणमाला। वंदिऊण, थोऊण. तो, जिनेश्वरकुं। तीनवेर, निश्चय, तथा, फेर, प्रदक्षिणा देके,। प्रणाम करके, और,जिनेश्वरकुं, सुर३, असुर । प्रमुदित(हर्षित)हुए, E"जिणं। तिगुण, "मेव, य, पुणो,' पयाहिणं॥"पणमिऊण, "य, “जिणं, "सुरा,ऽसुरा। “पमुइआ, के अपने स्थानोंमे,पीछे,चलेगये ।२४। क्षिप्तक छंद । उस, महामुनिकुं, मैं भि,हाथजोडाहुआ । राग, द्वेष, भय, मोहसे, वर्जित । देव, सभवणाई, ता,गया॥२४॥ खित्तयं तं,महामुणि, महंपि,पंजली। राग,दोस,भय,मोह,वजियं ॥देव, 5 दानव, नरेंद्रोंसे,वंदित । शांतिनाथ, उतम,मोटेतपाले,नमताहूं।२५॥क्षितक छंद । आकाशके बीचमें,विचरने(फिरने वालो । ललित(मनोहर), दाणव,नरिंद,वंदि। संति, मुत्तमं,महातवं नमे॥२॥ खित्तयं। अंबरंऽतर,विआरणिआहिं। ललिअ, १ शोभाषमात आभूषण पहरे हुए। x तेपोसमी चोवीसमी गाथा अन्वयके अफ भेले । सन्म फोज आदि स्वारिवारके। ३ चनानिक देव । ४ भवनपतिदेव । ११०॥ Jain Education International For Personal Private Use Only wwimininelibrary.org
SR No.600211
Book TitlePanch Pratikraman Sutra
Original Sutra AuthorSiddhachal Kalyan Bhuvan tatha Surat
Author
PublisherSiddhachal Kalyan Bhuvan tatha SUrat Nava Upasarana Aradhak
Publication Year1933
Total Pages192
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript
File Size18 MB
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