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________________ S (जागरूकेषु) ज्ञानी बडे २ महापुरुषों केभी (प्रतुः) इसलिये मालिक स्वामि है पुनः (तमसानावृत्तः) तमोगुणादिक जीतसंग्रह अध्यात्म अंधकारसें नहिछादित होनेवाली ऐसा ज्ञानमय स्वरूप हैं जिस आत्मज्योतिका वह सर्वपदार्थों के प्रकाशित और विचार साक्षीभूत और सर्वके अंतर्यामी हैं पुनः (स्वयं) अपने तेज प्रकाशसेंही (स्फुरति) अर्थात् अपने ज्ञानसेंही चमकरही हैं ॥१३॥ भावार्थः-आत्मज्योतिका स्वरूप कैसा है मानुकि द्रव्यकर्मो ज्ञानवरणी दर्शनावरणी आदि अष्टको नोकर्म इसलिये चक्रीय आहारिक तैजस और कार्मण ऐसें पांच शरीर तथा भावकर्म वे रागद्वेष उपरोक्त सर्वकर्मों के पर्यायोसे रहित हैं आत्मज्योतिका स्वरूप गणशविज्ञानियोंकेभी प्रनु है और तमोगुणादिक अर्थात् अज्ञानरुपी अंधकारसें नहिछादित होनेवाली ऐसी महानिर्मल आत्मपरमज्योति है और सर्वज्ञपदार्थों के प्रकाश करनेवाली सबके साक्षीभूत दृष्टा और (त्रैलोक्यपूजित) सबके स्वामी अपने तेज प्रकाश याने ज्ञानज्योतिर्मय लोकालोकके विषे ool चमकरही हैं. ॥१३॥ मू०-परमज्योतिषःस्पर्शात । दपरंज्योतिरेधते ॥ यथासूर्यकरस्पर्शात। सूर्यकान्तस्थितोनलः ॥१४॥ ___ शब्दार्थः-पुनः आल्नज्योतिका तेज प्रभाव कैसा है मानुकी (परमज्योतिषःस्पर्शात) परमआत्मज्योकि एक लेशमात्रस्प होनेसें (अपरं) और (ज्योतिः) आत्मज्योतिका तेज प्रकाश (एधते) दिनदिन वृद्धिको प्रास होता है याने आत्म- | JE ज्ञान दिनदिन वृद्धिको प्राप्त होता हैं, कैसें वृद्धिकों पास होता है (धथा) जैसें (शर्यकर पीत) सूर्यके एक लेशमात्र किरणका स्पर्श होने से (सूर्यकान्त स्थितोनलः) सूर्यकान्तमणिके विसे रहाहुआ अग्निका तेज दिन २ वृद्धिको प्राप्त होता है C in Education in For Personal & Private Use Only www.janeiro
SR No.600209
Book TitleAdhyatmavichar Jeet Sangraha
Original Sutra AuthorJitmuni
Author
PublisherPannibai Upashray Aradhak Bikaner
Publication Year1935
Total Pages122
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript
File Size11 MB
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