________________
السلطانة
जीतसंग्रह
अध्यात्मविचार ॥२५॥
दुनियोंको चेला बनानेकी इच्छा होवे तोप्रथमसेंही अपने मनको चेला बना ले अर्थात् मनको चेला कर्के तत्पश्चात् काम क्रोधरूपी मतंगको वशकरके अर्थात कामक्रोध तथा मनको जीतनेपर सर्व जगत् तेरा चेलाही बनजायगा ॥६८॥
दोहा-मालामोसें लडपडी । क्यों फेरावे मोय ॥ चिचतो डोलम डोल हैं । केसे मिले प्रभु तोय ॥६९।। - भावार्थः-महात्मा कहते है कि एक दिन माला मोसें लड पड़ी और कहने लगीकी हे मूर्ख तुं रोजकारोज मेरेको क्यों नाहक फेराता है क्योंकि तेरा चिततो ठीकाने नही तब तेरेको परमात्मा कैसे मिलेगा ॥६९।।
दोहा-भरम न भागो मनतणो । अनंत घेर मुनि भेष ॥ आत्मज्ञान कला विना । अंतर रह गया लेष ॥७॥
भावार्थः-अनंतीबेर मुनिसाधुका भेष धारण किया जिसमेंभी नवे नवे सांग धारण किये कभीतो श्वेताम्बरी | कभी दिगंबरी कभी पीताम्बरी कभी भगवें कभी काले ऐसें नाना प्रकारके सांग याने वेष बनाके नटवेकी तरह | लखचौरासीके विषे खूब नाच किये लेकिन सदगुरुकी कृपाविना जीवका भ्रम दूर हुआ नही
गाथा-रामभणी रहमानभणाइ । अरिहंत पाठपढाइ । घरघर ने हुं धंधे विलुगी । अलगी जीव सगाई ॥१॥ दोहा-बंधेको पंधामिले । कैसे लहछोडाय ॥ कर सेवा तुं निग्रंथकी । सो पलमां दे छोडाय ॥१॥
भावार्थ:-कहो भलां बंधेको बंधा कैसें छोडाय शके जो गृहस्थ लोक हैं वहतो कनक और कामिनी आदिमें पूरीतोरसे बंधे हुये हैं और कलिकालके साधु और साध्वीओं वह चेलाचेली पुस्तक और गच्छादिक कदाग्रहमें पूरीतोरसे | बंधे हुये हैं अय कहो भला च्यारगतिरूपी बंधिवाने में कौन छोडा शके यहांपर राजा ब्राह्मणके दृष्टांतसे समझ लेना.
اللاتيان من المناللاسلحه الهند البدائل للسكان بلدية الان
JainEducation
For Personal & Private Use Only
Audiainelibrary.org