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________________ अध्यात्मविचार जीतसंग्रह חיפה והיה ברורה דקה זו רודן لللللللئاللللللللللللللللللللللنلتلل हस्तमुखी दीसे भली । करती कारमो नेह ॥ निज स्वार्थ विनु पापिनी । तुरत दिखावै छेह ॥३६।। पहली प्रीत करे रंगसुं । मीठी बोली नार ॥ मरनां दास करी आपनो । मारे ताकर मार ॥३७॥ नारी मदन तलावडी । बुडो सब संसार ॥ काढणहारो को नहीं । श्रोता करो विचार ॥३८॥ समुद्रदीप सायर तणो । जे नर पामे पार ।। नारी चरित्र हृदयनो । कोइ न लहै तस पार ॥३९॥ सत्य पुरुष सुशील जे । वांक नही तस कोय ॥ पण नारी संग तेहने । निश्चय कलंक चढें तुं जोय ॥४०॥ नारी नहीरे बापडा । है पिण विषनी बेल ॥ जोसुष वाच्छे मुक्तिना । तो नारी संगति मेल ॥४१॥ नारी जममां ते भली । जिण जायो पुत्र रत्न ।। ते सतीना पाये नमू । जगमां ते धन धन्य ॥४२॥ जिणणी जिणेतो भक्तजिण । केदाता केशर ॥ नहीतर रहेजे वांझणी । मती गमाये नूर ॥४३॥ पापघडो पूर्ण भरी । तें लियो शिर भार ।। कैसे छूटेगा प्राणिया । कियो न धर्म लगार ॥४४॥ जिण बचने पर दुःख हुवे । होय प्राणकी घात । ते बचन दूरे तजो। हित वचन कहो बात ॥४॥ जेमतेम परसुख दीजिये । दुःख न दीजे कोइ ।। दुःखदियां दुःख उपजै । सुग्वदियां सुख होय ॥४॥ सजनमुख अमृत लवे । दुर्जन विषकी ग्वान ।। सज्जनदुर्जन केम जाणिये । जयमुग्वयोले बाण ॥४७॥ दिया उपदेश लागे नहीं । जो न विचारे आप ॥ आपआप विचारतां । मिटे पुण्य अरु पाप ॥४८॥ धनकारण तूं झल फलै। धर्म क्युंन करे गिवार ॥ अनंत भावोंके पाप सब । क्षणमें हइ सबछार ॥४९।। in Education in For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.600209
Book TitleAdhyatmavichar Jeet Sangraha
Original Sutra AuthorJitmuni
Author
PublisherPannibai Upashray Aradhak Bikaner
Publication Year1935
Total Pages122
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript
File Size11 MB
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