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श्लोक-दम्भपर्वतदम्भोलिः । सौहार्दाम्बुद्धिचन्द्रमाः ॥ अध्यात्मशास्त्रमुत्ताल । मोहजालवनानलः ॥ ३ ॥ अध्यात्म-al
जीतसंग्रह विचार
शब्दार्थः-(दंभपर्वतदंभोलिः) कपटरूपी पर्वतको छेदनेकेलिये अध्यात्मशास्त्र एक वज्रके समानही हैं और Dell ( सौहार्दाम्बुजचंद्रमाः) मैत्रीभावरूपी समुद्रकी वृद्धिके लिये चन्द्रके समान ऐसा (अध्यात्मशास्त्रमुत्ताल) अध्यात्म-3E
शास्त्र वृद्धिको प्राप्त हुआ (मोहजालवनानलः) मोहजालरूपी वनको जालनेकेलिये मानु एक दावानलके समानही है ३ श्लोक-वेदान्यशास्त्रवित्क्लेशं । रसमध्यात्मशास्त्रवित् ॥ भाग्यभृद्भोगमाप्नोति । वहते चन्दनं खरः ॥ ४ ॥
शब्दार्थः-वेदशास्त्रके जाननेवाले तथा ( वेदान्यशास्त्रवित्क्लेश) अन्य सब शास्त्रके जाननेवाले अध्यात्मशास्त्रविना केवल क्लेशके भोक्ता है लेकिन (रसमध्यात्मशास्त्रवित् रसके भोक्ता तो एक अध्यात्मशास्त्रके जानही हैं परन्तु (भाग्यभृदभोगमाप्नोति) वह रसतो जो भाग्यवान् पुरुष होता है उनकोंही मिलता हैं अन्यतो (वहते चन्दनं खरः) केवल गधेकी तुल्य श्रुतज्ञानरूपी चंदनके बोजेको उठानेवाले भारका भागी है रसके भोक्ते नही है गाथा-रसभाजनमें रहत द्रव्य नित नहितसरसपहिचान । तिमश्रुतपाठीपंडितकुं प्रवचन कहत अज्ञान ॥१॥
सार लह्या विन भार कह्यो श्रुत खर दृष्टान्त प्रमाण इतिचिदानन्दवचनात् ।। श्लोक-धनिनांपुत्रदारादि। यथासंसारवृद्धये ॥ तथापाण्डित्यहप्तानां । शास्त्रमध्यात्मवर्जितम् ॥ ५॥
शब्दार्थः-(धनिनांपुत्रदारादि) जैसें धनवान पुरुषकों पुत्र स्त्री आदि (यथा संसारवृद्धये) संसारकी वृद्धिकेलिये
اور موت اباالفدا
العمليات النسخة الكالستالی ملاقات کنند
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