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________________ अध्यात्म विचार आश्रवकी रुकावट विना संघर नही और संबर बिना मोक्ष नही मोक्षविना सुखनही जीव भटके च्यारं खान ऐसा योगकी सत्तरमी वीसीमें हरिभद्रसूरीने कहा है इसलिये आत्मज्ञानकी प्राप्ति विना सर्वतरहकी क्रियाकांड अंकविनाकी शून्यकी तरह निष्फलहीहै गाथा — कर्मकठिनकठदाहवा । ध्यानधरुंचित्तलाय ॥ अन्तरात्महोयके । भर्जुनिरंजनराय ॥ १ ॥ अष्टांगयोगेकरी | साधे मोक्षदयाल ॥ ते सद्गुरुनाचरनमां । वन्दन करूं तिहुँ काल ॥ २ ॥ | सिद्ध गतिसाधन भणी । सावधान हुयाजेह || तेमुनिवरपदवदतां । निर्मल होवे देह |३| एसें पञ्चम गतिके साधक सम्यक्वान मुनिका आयु वैमानिक देवों सिवाय दूसरी गतिका बंधनही पडते ३ अब कहते है कि संघ किसकों कहना सूत्रपाठः सुहशीला ओसच्छंदचारिणो वैरिणा शिववहस्स आणाभगओ बहुजणा ओमाभगह सिंधु ॥ १ ॥ है गौतम ! सुखशैलिये याने पुद्गलानंदियो अर्थात् पंचइन्द्रियोंके विषयसुखमें स्थापन करी है अपनीदृष्टिको फेर वीतरागकी आज्ञाभंगरूपी मसीका तीलक करके स्वच्छंदपणेसें विचरनेवाले अर्थात् अपनी इच्छा के अनुसारे चलनेवाले यह मोक्षमार्गके शत्रु भूत जिन आज्ञासें भ्रष्ट ऐसें कभी बहुतजन होवे तो भी हे गौतम उनको संघ | नहि कहा जावै ॥ १ ॥ तब हे भगवन् संघकिसकों कहाजावे सूत्रपाठ: - जहतुसखण्डणमयमंड गाई सुन्नरन्नमिविहलाई तहजाणसुआणार हियं अणुगणं ॥४॥ भावार्थ - जैसे किणबिनाके तुसका खंडन मुडदेको अलंकारोसें भूषित करना और सून बनमें बिलापकरना तैमही वीतरागकी आज्ञाविना सर्वधर्म नेम क्रिया अनुष्ठान निष्फलही है. सूत्रपाठः आणाइतवोआणाइ संजमोतहदाणमाणाएं आणारहिओधम्मो पल्ला लल्लूवपडिहाए ॥१॥ भावार्थ - त्रीतरागकी Jain Education International For Personal & Private Use Only जीनसंग्रह www.jainelibrary.org
SR No.600209
Book TitleAdhyatmavichar Jeet Sangraha
Original Sutra AuthorJitmuni
Author
PublisherPannibai Upashray Aradhak Bikaner
Publication Year1935
Total Pages122
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript
File Size11 MB
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