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________________ जीतसंग्रह २ आणाही जपतप आणासेंही संयम आणासेंही दानआदिक फलदायक है परन्तु भगवानकी आज्ञाविना जो धर्म | अध्यात्म- JE नेम व्रत पञ्चख्खान मानतेहै वह केवल घासके पुलेके समानहै ईसलिये आणामें ही धर्मकहा है ॥११॥ अव द्रव्य और विचार भावमें कितना अंतर है सूत्रपाठः-मेरुस्ससरिसयवस्सय जित्तिय मित्तंत अंतरंहोइ दवत्थय भावत्थय अंतरमिह॥१४॥ तित्तियं ॥२।। भावार्थः-मेरु पर्वत और राईके दानेमें जितना अंतर है इतनाही अंतर द्रव्य और भावमें हैं ॥२॥ संसा रकी असारताकेलिये गाथा-भमतांआससारमां दुलहोनरभवलाधोरे छांडीनींदप्रमादने आपस्वार्थसाधोरे ॥३॥ भाःहे भव्य इससंसारसागरके विषे एक एकयोनिके विषे यह जीव अनंबर अर्थात् लक्षचोराशी योनिके विषे परिभ्रमण करते हुये अतिदुर्लभ नरभव प्राप्त हुआहै इसलिये नींद और प्रमादको छांडके अपनास्वार्थसाधना चाहिये क्योंकि वारंवार रत्नचिंतामणिके समान मनुष्यभव और देवगुरुधर्मकी सामग्री प्राप्तहोनी अतिदुर्लभ है प्रमादकेवसीभूत हुए श्रुतकेवलियों नर्क निगोदमें रूलरहेहै इसलिये ज्ञानीने कहाहै कि हे भव्य अबनो चेतो ३ गाथा-सामग्रीसर्वधर्मनी । एलेंजेनरखोवेरे ॥माखीनीपरेहायते । घसतांआपविगोवेरे ॥४॥ भावार्थ:-जो पुरुष सर्वधर्मकीसामग्री पाकर मिथ्यात्वपनेसें हारजातेहै वह पुरुष मधमाखीकी तरह अपना दोनों हाथ अंतसमे घसतेहुए अतिपश्चात्ताप करते हुये अपनी आत्माको नरक निगोद में ले जातेहै वहांपर नानाप्रकारके छेदन भेदनकी मार खाते है यतः पप्पासंपरचोनही ददोकियोदर ॥ लाला लागेरह्यो ननोकियोहजूर हाथघसे इआणे जिभेतालूंदीध मरणवेलायेसांभरे" हायमधर्मनकीध ॥२॥ दृष्टान्तगाथा-जानलईवयुक्तिमं जेमकोईपरणवाजावेरे।लग्नवेलागई निंदमें पछीघjपछिताय Pawade For Personal & Preise Only
SR No.600209
Book TitleAdhyatmavichar Jeet Sangraha
Original Sutra AuthorJitmuni
Author
PublisherPannibai Upashray Aradhak Bikaner
Publication Year1935
Total Pages122
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript
File Size11 MB
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