SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 19
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ अध्यात्मविचार इतनाही ज्ञान काफी हैं, बाकी तो सब आडम्बर हैं लोकरंजनके लिये क्योंकी (परंज्योति प्रकाशकः) जो परमआत्मज्योतिका प्रकाश होना हैं वही उनमसे उत्तम ज्ञान हैं बाकीतो पोथोंके बेगन है २८ भावार्थ:-आत्मज्ञानका 3जीतसंग्रह यथार्थ प्रकाश होनेपर स्वआत्मरूपमेंही रहना और आश्रवकों रोकनाहै वही उत्तमसे उत्तम ज्ञान हैं बाकीतो कालक्षेपकके लिये ठीक हैं, आश्रवो भव हेतुः सम्बरोमोक्ष कारणम् । एतेहमारमुष्टिज्ञानं अवरसर्वप्रपंच १ शुद्धात्मअनुभव विना, बंधहेतुशुभचाल, आत्मपरिणामेजेरम्या, यहीजआश्रवपाल २ सूक्ष्मयोधविनभव्यजन-जहोवेतत्वपरतीत, तत्वावलंबनज्ञान बिना नटलेभवभयभीत ३ तत्वतेंआत्मस्वरूपहे, शुद्धधर्मविण एह परभावागतचेतना कर्मग्रहछेतेह ४ मु०-स्तोकमप्यात्मनोज्योतिः पश्यतोदीपवद्धितम् । अंधस्यदीपशतवत परज्योतिनवह्यपि ॥२९॥ | श०-क्योंकि (आत्मनः) आत्मज्ञानका (स्तोकमपिज्योतिः) थोडाभी प्रकाश (दीपवद्वितं) दीपकज्योतिकी तरह वृद्धिको प्राप्तहुआ (पश्यतः) चक्षुवान् पुरुषके लियेतो बहुत है लेकिन (अन्धस्य) अंधे पुरुषके लियेतो (दीपशतवत्) सोदीपककी ज्योतिके प्रकाश होनेपरभी अन्धेराही रहता है क्योंकि वह अंधापुरुषहोनेपर (वद्यपि) नानाप्रकारकी वस्तुओंको नहीं देख शक्ता तैसें (परंज्योतिः) परम आत्मज्योतिके प्रकाशकों अज्ञानी पुरुष नहीं देख शक्ता | अर्थात् आत्मज्ञानसें वर्जित अज्ञानी पुरुष कभी हजारोंही ग्रन्थोंको पढलेवेतोभी आत्मज्ञान विना प्रकाश कभी नही | होता २९ भावार्थ:-क्यों कि आत्मज्ञानका थोडाभी प्रकाश दीपज्योतिकी तरह वृद्धिको प्राप्तहुवा चक्षुवान पुरुषके | लिये बहुतहै लेकिन अंधपुरुषके लियेतो कभी सो दीपककी ज्योतिका प्रकाश क्युनही होजावे तोभी अंधेराही For Personal & Private Use Only
SR No.600209
Book TitleAdhyatmavichar Jeet Sangraha
Original Sutra AuthorJitmuni
Author
PublisherPannibai Upashray Aradhak Bikaner
Publication Year1935
Total Pages122
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript
File Size11 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy