SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 18
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ TOD जीतसंग्रह ॥८ ॥ मूककी समान होजाती है ऐसी दशा प्रगट होनेपर यही आत्मा अपने स्वगुणका भोगी आपसेही होजाता है.निजअध्यात्म-11 विचार J गुण भोका परगुग लोप्सा आत्मशक्ति जगाईरे परम जगनांतारो मोएतारोनी कृपानिधस्वामी वही योगीराज परम॥८॥ आत्मज्योतिको प्रगट करके निर्वाण पदकों प्राप्त करता है लेकिन पालपोल की भक्तिसे आत्मज्योतिका प्रकाश कभी नही होसक्ता चाहे जितने ऊंचे २ हाथ करके चिल्लाओ. ॥२६॥ मृ०-परेषांगुणदोषेषु । दृष्टिस्तेविषदायिना ॥ स्वगुणानुभवालोकाद-दृष्टिःपीयूषवर्षिणी ॥ २७ ॥ शब्दार्थः-जब योगीराजके धटविसे स्वात्मज्योतिका प्रकाश होजाता है तब (परेषांगुणदोषेषु) दूसरोंके गुण और ओगुणमें जो दृष्टि देनी है याने परगुण और परओगुणमें जो दृष्टिदेना (ते) वहतो आपसें आप (विषदायिनी) जहरके समान होजाती है और (स्वगुणानुभवा लोकदृष्टिः) स्वआत्मगुण अनुभव कर्के दृष्टि देनेंपर (पीयूषवर्षिणी) अमृतधाराके समान वर्षनेवाली यही दृष्टि होजाती है. ॥२८॥ भवार्थ:-जय योगीराजकी दृष्टि आत्मज्ञानरुपी अमृतके विषे लीन होजाती तबही योगीराज अपने स्वसरूपको देख शक्ता हैं वही महापुरुष प्रशंसाके योग्य हैं ॥२७॥ | मु०-स्वरूपदर्शनंश्लाध्यं । पररूपेक्षणंवृथा ॥ एतावदेवविज्ञानं । परंज्योतिप्रकाशकम् ॥ २८ ॥ शब्दार्थः-पुनः वही महापुरुष [स्वरुपदर्शनंश्लाध्यं] अपने स्वसरूपको देख शक्ता हैं [पररूपेक्षणंवृथा] तबजो पररूप देखना है वहतो आपसेंआप वृथा होजाता हैं (एतावदेवविज्ञानम्) बस ज्ञानी महापुरुषके लिये انا في الثاني لانتقال للثالث الافلام DDDDDDDD Jan 21 For Personal & Private Use Only Raw.jainelibrary.org
SR No.600209
Book TitleAdhyatmavichar Jeet Sangraha
Original Sutra AuthorJitmuni
Author
PublisherPannibai Upashray Aradhak Bikaner
Publication Year1935
Total Pages122
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript
File Size11 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy