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________________ जीतसंग्रह | (तस्मै) भवसागरमें भव्यप्राणियोंके उद्धार होनेके लिये केवल एक परम आत्मज्योति है वहआत्मज्योति कैसी हैं | अध्यात्मविचार 18 मानुकि (विश्वप्रकाशाय) सर्वविश्वकों प्रकाशमय और सर्वका उद्धार करनेवाली है एसी (परमज्योतिषेनमः) परम | आत्मज्योतिकों मेरा नमस्कार हो लेकिन (केवलं) केवल (तमसेनैव) अज्ञानरूपी तिमिरकों नहीं हैं और (प्रकाशादपि) | वह सर्वतरहके याने चंद्रसूर्यग्रह नक्षत्र और तारोंकी ज्योतिके तेज प्रकाशोसेंभी (यत ) जो आत्मज्योतिका प्रकाश है वहतो (परं) सबसे परे और सबसे उत्कृष्ट प्रकाशमय है पुनः अज्ञानरूपी तीमिरको दूर करनेके लिये मोक्षरूपी अक्षय सुखकों देनेवाली तोएक आत्मज्योतिही है आत्मज्योतिके प्रकाशविन सब अन्धेराही है अर्थात् आत्मज्ञान बिना हजारोंही ग्रंथ पढनेपरभी अंधेराही है १६ सवैया-वेदपढोज्यं किताबपढो अरुदेखो जिनागमकों सबजोइ, दानकरो अरु स्नानकरो भावैमौनधरो वनवासीज्यूहोई, जापजपो अरूत्तापतपोकेई कानफरायफिरोपुनिदोइ. आत्मध्यान अध्यात्मज्ञानसमो शिवसाधन और न कोई. ॥१॥ पुनः आत्मज्योतिका स्वरूप कैसा है मानुकि अनंतज्ञान अनंतदर्शन अनंतचारित्र और सम्यक् सुख अनंतवीर्यमयी उत्पन्ना हुआ है स्वरूप जिस आत्मज्योतिका इसलिये सर्वतरहकी उत्तम कलाओसें संयुक्त ऐसी परमआत्मज्योतिका प्रकाश मेरे घटविसें प्रकाशित होउं. मु०-ज्ञानदर्शनसम्यक्त्व । चारित्रसुखवीर्यभूः ॥ परमात्मप्रकाशोमे । सर्वोत्तमकलामयः ॥१७॥ शब्दार्थः-(ज्ञानदर्शन सम्यक्तवचारित्रसुखवीर्यभूः) अनंतज्ञान अनंतदर्शन अनंतचारित्र सम्यक्सुख और अनंतवीर्यमयी उत्पन्ना हुआ है स्वरुप जिस आत्मज्योतिका इसलिये (सर्वोत्तमकलामयः) सर्वतरहकी उत्तमकलाओसे wwwwwwwwww For Personal Private Only
SR No.600209
Book TitleAdhyatmavichar Jeet Sangraha
Original Sutra AuthorJitmuni
Author
PublisherPannibai Upashray Aradhak Bikaner
Publication Year1935
Total Pages122
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript
File Size11 MB
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