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उत्तराध्ययन
सूत्रम् ११२३
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व्याख्या - 'बडिसविभिन्नकाएत्ति' बडिशं प्रान्तन्यस्तामिषो लोहकीलकस्तेन विभिन्नो विदारित: कायो यस्य स बडिशविभिन्नकाय: मत्स्यो Hel प्रमादस्थानin यथा आमिषस्य मांसस्य भोगे खादने गृद्ध आमिषभोगगृद्धः ।।६३।।
नाम
द्वात्रिंशजे आवि दोसं समुवेइ तिव्वं, तंसि क्खणे से उ उवेइ दुक्खं ।
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Is मध्ययनम् दुईतदोसेण सएण जंतू, न किंचि रस्सं अवरज्झई से ।। ६४।।
||७|| एगतरत्तो रुइरे रसंमि, अतालिसे से कुणई पओसं । दुक्खस्स संपीलमुवेइ बाले, न लिप्पई तेण मुणी विरागो ।। ६५।। रसाणुगासाणुगए अ जीवे, चराचरे हिंसइऽणेगरूवे ।
चित्तेहिं ते परितावेइ बाले, पीलेइ अत्तगुरू किलिडे ।।६६।। व्याख्या - अत्र चराचरान् भक्षणोपयोगिनो मृगपशुमीनपक्षिप्रभृतीन् कन्दमूलफलादींश्च हिनस्ति ।। ६६ ।।
रसाणुवाए ण परिग्गहेण, उप्पायणे रक्खणसन्निओगे। वए विओगे अकहिं सुहं से, संभोग काले अ अतित्तिलाभे ।।६७।।
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