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उत्तराध्ययन
सूत्रम् १९२४
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रसे अतित्ते अ परिग्गहे अ, सत्तावसत्तो न उवेइ तुट्ठि । अतुट्ठदोसेण दुही परस्स, लोभाविले आययई अदत्तं ।। ६८ ।। व्याख्या - इहादत्तं खण्डखाद्यफलादिकं रसवद्वस्तु ।। ६८ ।।
तहाभिभूअस्स अदत्तहारिणो, रसे अतित्तस्स परिग्गहे अ ।
माया व लोभदोसा, तत्थावि दुक्खा न विमुञ्चई से ।। ६९ ।। मोसस्स पच्छा य पुरत्थओ अ, पओगकाले अ दुही दुरंते । एवं अदत्ताणि समाययंतो, रसे अतित्तो दुहिओ अणिस्सो ।। ७० ।। रसाणुरत्तस्स नरस्स एवं कत्तो सुहं होज्ज कयाइ किंचि । तत्थोवभोगेवि किलेसदुक्खं, निव्वत्तई जस्स कए ण दुक्खं ।। ७१ । । एमेव रस्संमि गओ ओसं, उवेइ दुक्खोहपरंपराओ । पट्ठचित्तो अचिणाइ कम्मं, जं से पुणो होइ दुहं विवागे ।। ७२ ।।
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DATTAWAL
GODANTADI
प्रमादस्थाननाम
द्वात्रिंशमध्ययनम्
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