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________________ २ जे कर्मबंधनना हेतुओ छे ते कर्म छोडवाना हेतु पण थइ शके छ भने जे कर्म छोडवाना हेतुओ छे ते कदाच कर्मबंधनना हेतु पण थइ शके छे. अथवा जेटला कर्म खपाववाना हेतुओ के एटलाज कर्मबंधनना हेतुनो छ भने कर्मबंधनना हेतुश्रो छे एटलाज कर्म खपाववाना पण के. एम संपूर्ण रीते समजीने प्रभुनी आज्ञा मुजब धर्म भाराधवा कोण | उजमाळ न थाय ? ३ हे मुनि ! तु तारा शरीरने तपथी खुब कुश तथा जीर्ण कर. जेम जुना लाकडांने अग्नि जलदी बाळे छे तेम | स्नेह रहित अने सावधान पुरुषनां कर्म जलदी बळी जाय छे. ४ जेो कषायोने उपशमावी शान्त बन्या छे तेस्रो परम सुखी छे, एम समजी कदापि क्रोधादि कषायने सेववा || नहि. क्रोधादिकथी प्राणीओ केवा दुःखी थाय छे तेनो तुं विचार कर. ५ मुनिए सर्व संसारनी जंजाळ छोडी, उपशम भावथी अनुक्रमे वधता जता तप वडे देहनु दमन करवू. मुक्ति मेळवनार महापुरुषोनो मार्ग बहु विकट छे. ६ माटे हे मुनि ! तुं तारा मांस भने लोहीने सुकव, कारण के जे ब्रह्मचर्यमा रहीने तपथी सदा शरीरने दमे के तेज महापुरुष मुक्ति मेळवनार होवाथी माननीय थाय छे. सदुद्यमी-अप्रमत्त पुरुषोने प्रांते कशी उपाधि रहेती नथी. अध्ययन पांचमुं. (लोकसार) "समकित मुनिभावे-मुनिभावज समकित कडं." Jain Education in For Personal Private Use Only ww.jainelibrary.org
SR No.600205
Book TitlePrashamrati Prakaranam
Original Sutra AuthorUmaswati, Umaswami
Author
PublisherJain Dharm Prasarak Sabha
Publication Year1932
Total Pages240
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript
File Size19 MB
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