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________________ प्रशमरति प्रकरणम् ॥३६॥ १२ जंजाळथी छुटुं थर्बु ए उत्तम रस्तो छ. कुशळ पुरुषो दुःखना कारण पोते तजे छे अने बीजा पासे तजावे छे. । १३ जे परमार्थदर्शी छे ते मोक्ष मार्ग विना बीजे रमतो नथी अने जे बीजे रमतो नथी तेज परमार्थदर्शी छे. ते निरीहपणे सर्वने समान गणी सदुपदेश दे छे. परमार्थदर्शीने कंइ पण हानि नथी. अध्ययन त्रीजं. (शीतोष्णीय) १ गृहस्थो सदा मतेला के भने मुनिमो सदा जागता छ जगतमा अज्ञान एज अहितकारी छे.. २ अवसर मळेलो जाणीने प्रमाद न करवो. तुंज तारो मित्र छे. मित्रने बहार शा माटे शोधे छ ? तारा भात्माने विषयोथी रोकी राखी तुं दुःखोथी छुटीश. ३ प्रमादीने सर्व तरफथी भय रहेलो छ, अप्रमादीने कोइ तरफथी भय नथी. ४ जे एक मोहनी कर्मने नमावे छे ते सर्वने नमावे के. ५ बुद्धिवंत पुरुष क्रोध, मान, माया, लोम, राग, द्वेष अने मोहने छंडी सर्व दुःखनो अंत करी शके छे. मोक्षार्थी मुनिओए कर्मबंधनां कारण तजीने कमैने खपावां जाइए. सर्वज्ञ सर्वदर्शाने तो कशी उपाधि छ ज नहि. मध्ययन चोएं. (ANI तो कशी उपाधिकरी शके छे. मोक्षार्थ १ संसारमा आसक्त रही तेनी अंदर खुंची रहेनारा जीवो चिरकाळ संसार-परिभ्रमण करे के. Jain Education in For Personal Private Use Only Jainelibrary.org
SR No.600205
Book TitlePrashamrati Prakaranam
Original Sutra AuthorUmaswati, Umaswami
Author
PublisherJain Dharm Prasarak Sabha
Publication Year1932
Total Pages240
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript
File Size19 MB
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