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अथवा संयोग वियोग जन्य दुःखना कडवा अनुभवनी कोटियोने वधारनारा--दुःखना सतत अनुभवने करावनारा निवडे छे. वळी प्रत्यक्ष प्रमाणथी स्थाने स्थाने देवनारकादिक जन्ममां, आर्यअनार्यादिक मनुष्यमा तेमज गाय, भंश अने अजादिक तियच जातिमां प्राणीओनुं नियत अनियत काळभावी मरण थतुं जाण्या छतां पण जेमने विषयभोगमा रति-पासक्ति थाय छे, तेमने कुशळ पुरुषो मनुष्यनी गणनामा ज गणता नथी; परंतु बुद्धिहीन होवाथी तेमने तिर्यचनी गणनामा गणे छे. देवनारकीमोनु मरण नियत (निश्चित) काळ भावी होय छे त्यारे मनुष्य तियेचोर्नु मरण अनियत काळ भावी होय छे. अथवा सर्वकाळे मनुष्य भने तिर्यचोनुं आयुष्य अनियत-अनित्य होय छे. या प्रमाणे आयुष्यनी अनित्यता जाण्या छतां जेओ विषयराग तजता नथी, तेमने मनुष्य करतां तिर्यचज गणवा ठीक छ. सुज्ञ जनोए तो आयुष्यनी अस्थिरता विचारी शीघ्र चेती विषयासक्ति तजवा पूरतो ख्याल करवोज घटे छे एम शास्त्रकार भागळ जणावे छ।
मनने व्हाला लागे एवा शब्दादिक विषयोनो भावी परिणाम सुज्ञजनोए अवश्य विचारवो जोइए. एटले अत्यारे इष्ट || परिणामवाळा जणाता विषयो काळान्तरे भनिष्ट परिणामवाळा थाय छ; अनिष्ट परिणामवाळा देखाता विषयो पाछा इष्ट परिणामवाळा थइ जाय छे तेमनो कोइ अवस्थित परिणाम जणातो नथी. त्यारे तेवा अनवस्थित परिणामवाळा विषयोथी विरमता छता आत्माने अतुल अने अनवद्य (पापबंधना अभावथी निर्दोष ) अनुग्रह ( लाभ ) थाय छे. ते सुझोए विचारबुं जोइए. इति गुणदोषविपर्यासदर्शनाद्विषयमूञ्छितो ह्यात्मा। भवपरिवर्तनभीरुभिराचारमवेक्ष्य परिरक्ष्यः॥११२॥
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