SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 80
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ | भक्षणनी पेरे पाछळथी अति दुःखदायक निवडे छे, जेम अढार जातना शाक युक्त अन्न मिष्टानपाननी पेरे मधुर छतां | विष संयुक्त खाधुं थकुं ते छेवट परिणामे विनाशकारी थाय छे, तेम सामग्रीयुक्त रमणिक रागरसथी सेवेला विषयो सेंकडो भवपरंपरामा पण दुःखना अनुभवनी परंपराने वधारे छे. अनिश्चित एवू पण मरण जोतजोतामा डगले डगले निश्चित थतुं जोया छतां जेमने विषयोने विषे रति थाय छे तेमने मनुष्य जन गणवा. मनने अनुकूल विषयोने विषे चमणो अनुग्रहकारी अने निष्पाप एवो विषय परिणाम नियमा नित्यप्रति सारीरीते चिंतववो. १०६-१११ विवेचन-स्पर्शादिक विषयो प्रथम-शरुआतमां कुतुहलथी उत्सुकतावडे भोगवतां मधुरा उत्सवभूत लागे छ; मध्यमा विषय प्राप्ति समये शृंगार, वेषाभरण, स्तनस्पर्श, मुखचुंबन, करनखक्षत प्रहार, हास्य स्नेह कोपादिमय होवाथी ते दीप्त रसवाळा लागे छे अने विशिष्ट भोगसंयोग थया बाद वस्त्र रहित होवाथी प्रगट गुदाद्वारादिक अंग विकृति देखावाथी तेज स्पर्शादिक विषयो बिभत्स-बिहामणा लागे छे, तेमज बहु विलापादिक स्वरना श्रवणथी, अनुकंपापात्र होवाथी भने परिसमाप्त प्रयोजनपणाथी, रखे मने कोइ आवी स्थितिमा देखी जाय एवी भीतिथी त्वरित लजावंती स्ववस्त्रादि धारी ले तेथी, प्रांते ते करुणा, लजा, भय अने परिश्रमथी भरेला जणाय छे. मध्यमा पण उदय पामेली तीव्र मोह वेदनानो अनुभव करावनारा अने प्रारंभमा अति कुतूहलथी आतुरताने प्रगटावनारा होय छे. ए रीते कदापि ते चित्तनी स्वस्थता तो संपादन करावता ज़ नथी तेथी परिणामदर्शी-परमार्थदर्शी जनोए उक्त विषयो त्यजवा योग्यज छे. उक्त विषयो भोगवती वखते लेश मात्र सुख बुद्धि उपजावे छे तो पण परिणामे तो ते अति अनर्थ करे छे ते शास्त्र For Personal Private Use Only
SR No.600205
Book TitlePrashamrati Prakaranam
Original Sutra AuthorUmaswati, Umaswami
Author
PublisherJain Dharm Prasarak Sabha
Publication Year1932
Total Pages240
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript
File Size19 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy