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श्री
प्रशमरति प्रकरणम्
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योनिमा अथवा मनुष्य जातिमां जन्म ले फरी एकेन्द्रिय, द्वीन्द्रिय, त्रीन्द्रिय, चतुरिन्द्रिय तेमज पंचेन्द्रिय जातिमा अवतरे तमा एकेन्द्रियना स्वस्थानमा शर्करा वालुकादिक बहु भेदो कह्या छे एवी रीते अप्काय, तेउकाय, वायुकाय अने वनस्पतिकायनी जेटली योनिश्रो तेटला ज लक्षप्रमाण जातिो. तेवीज रीते देवताओनी पण जाणवी. आधीज ८४ लक्ष योनि
प्रमाण संसार कह्यो छे. तेमा उत्पन्न थता जीव हीन उत्तम तेमज मध्यम कुळोमां जन्म ले छे. आ प्रकारना ढंगधडा वग| रना भव भ्रमणर्नु भान करी कोण विद्वान् जातिमदने आदरे ?
एज वातने शास्त्रकर्ता स्फुटतर-वधारे स्पष्ट करे छ:-एक स्पर्शन इन्द्रियर्नु निर्माण थये छते एकेन्द्रिय जाति IOS | कहेवाय छे. एवी रीते अनुक्रमे रसना, घ्राण, चक्षु अने श्रोत्ररूप एकेक अधिक इंद्रियर्नु निर्माण थये छते ते बेइंद्रिय, त्रीन्द्रिय, चतुरिन्द्रिय अने पंचेन्द्रिय जाति कहेवाय छे. एवी रीते स्वकर्मवशात् इन्द्रियना निर्माण पूर्वक अनेक प्रकारनी जातिओने जीव धारण करे छे. श्रामा कोनी कइ शाश्वती जाति छ ? तेथी जातिमद करवो युक्त नथी.
तेवीज रीते कुळमद टाळवा शास्त्रकार उपदेश आपे छ:-पिताना वंशने कुळ कहिये. एवा विशाळ एटले लोकप्रसिद्ध कुळमां उत्पन्न थयेला स्त्रीपुरुषोने पण विरूप, कुबडा-वामनरूप पामेला, निर्बळ, निरक्षर-अत्यंत मूर्ख, बुद्धिहीन, सदाचारशून्य-परदारादिक व्यसनलुब्ध, अने धनधान्यादिक संपदा रहित-निर्धन स्थितिनां जोइने गर्व करवानो अवकाशज नहिं होवाथी जरूर कुळमद परिहरवा योग्य छे.
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