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________________ वळी विशेषमा असदाचार ( निंद्य आचार ) नुं सेवन करवाथी जेनु वर्तन मलीन छे ते कुळमद शुं जोइने करे ? तेने कुळमद करवो निष्प्रयोजन छे. अने जेनामा रूप, बळ, श्रुत, बुद्धि अने विभवादिक विद्यमान छे ते स्त्री-पुरुष ते ते गुणथीज अलंकृत छे तेथी सदाचारसंपन्न होय तेने पण कुळमद करवानी कशी जरुर रहेती ज नथी. ए रीते कुळमद करवो निरर्थक छे, माटे तेनो त्याग ज करवो घटे छे. रूपमद पण नज करवो जोइए एम शास्त्रकार बतावे छ:-पितानुं वीर्य अने मातानुं रुधिर ए बंनेथी उद्भवेला, अने । निरंतर मळता अनुकूळ पोषणथी वृद्धिने पामता अने अपथ्य अनिष्ट खानपानना उपयोगथी हानिने पामता, वळी ज्वर, अतिसार, कास (खांसी) अने श्वासादिक रोग अने वयहानि रूप जरावस्थाना स्थानभूत एवा श्रा औदारिक देहमां रूपनो मद करवा जेवो अवकाशज क्या छ ? मतलब या अशुचिथी पेदा थयेला, नित्य हानिवृद्धिने पामता अने विविध रोग तेमज जराथी जर्जरित थता देहमा रूपनो मद शुं जोइने करवो ? तेज वात वधारे स्पष्ट करी आगळ बतावे छे. पुरुषना | नव द्वारथी अने स्त्रीना द्वादश द्वारथी सदाय स्रवता मळ (अशुचि )ने यत्नपूर्वक दूर करी साफसूफ राखवा योग्य, चामडी अने मांसवडे आच्छादित थयेला (ढंकायला), मूत्र, विष्टा, रुधिरादिक अशुचि पदार्थोथी भरेला, अने गमे तेटला प्रयत्नथी गमे ते रीते लालनपालन कराया छतां पण अंते अवश्य विणसी जनारा ( भस्मीभूत थनारा अथवा माटी साथे मळी जनारा ) एवा आ क्षणभंगुर देहना रूपमा मद करवा जेवु छ शुं ? के जेथी विवेकी लोको तेनो मद करे ! मतलब के आ क्षणभंगुर देहना रूपमा मद करवा जेवू कशुं सुज्ञ जनोने तो जणातुं नथी, फक्त निर्विवेकी मूढ Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.600205
Book TitlePrashamrati Prakaranam
Original Sutra AuthorUmaswati, Umaswami
Author
PublisherJain Dharm Prasarak Sabha
Publication Year1932
Total Pages240
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript
File Size19 MB
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