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________________ प्रशमरति प्रकरणम् ॥२२॥ विनयफलं शुश्रूषा गुरुशुश्रूषाफलं श्रुतज्ञानम् । ज्ञानस्य फलं विरतिविरतिफलं चावनिरोधः ॥ ७२ ॥ संवरफलं तपोबलमथ तपसो निर्जराफलं दृष्टम् । तस्माक्रियानिवृत्तिः क्रियानिवृत्तेरयोगित्वम् ।। ७३ ।। * योगनिरोधाद्भवसंततिक्षयः संततिक्षयान्मोक्षः। तस्मात्कल्याणानां सर्वेषां भाजनं विनयः ॥ ७४ ।। भावार्थ-विनयर्नु फळ शुश्रूषा (सांमळवानी इच्छा) रूप छे. गुरुनी शुश्रूषानुं फळ श्रुतज्ञान छे. ज्ञान- फळ विरति (संयम ) रूप छे भने संयमर्नु फळ आश्रवनिरोध (संवर ) रूप छे. संवरचें फळ तपोबळ छे अने तपनुं फळ निर्जरा (देशथी कर्मक्षय) जणावेलु छ तेथी क्रियानी निवृत्ति अने क्रियानिवृत्तिथी अयोगीपणुं (योग निरोध) थाय छे. योग निरोधथी भवनी परंपरानो क्षय अने भवपरंपराना क्षयथी मोक्ष थाय छे ते माटे सर्व कल्याणचें मूळ स्थान विनय छे. ७२-७४. * विवेचन-ज़े गुरुमहाराज उपदेश ते सांभळवानी इच्छा अने सांभळीने ते मुजब वर्तवं ते विनयर्नु फळ छे. विनय पूर्वक शास्त्रश्रवण करवाी श्रुतज्ञाननी प्राप्ति थाय छे. सम्यग्ज्ञान (अने श्रद्धा ) बडे देशविरति तथा सर्वविरतिनी प्राप्ति थाय छ भने विरतिवडे आवतां नवां कर्मनो अटकाव थाय छे, एटले संवरनी प्राप्ति थाय छे. संवरथी तपोबळ प्राप्त थाय छे. तपयोगे कर्मनुं परिशाटन (निर्जरा) थाय छे. निर्जराथी क्रियानी निवृत्ति थाय छे, अने क्रियानी निवृत्तिथी योगनिरोधवाळा बनी अयोगी थवाय छे. योगनिरोधथकी जन्म-जरा-मरणप्रबन्ध लक्षण नरकादि भवसंततिनो आत्यंतिक क्षय थाय छे अने जन्ममरणनी परंपरानो क्षय थवाथी एकान्तिक अने आत्यन्तिकादिक गुणयुक्त ॥२२॥ Jain Education Intel For Personal Private Use Only ainelibrary.org
SR No.600205
Book TitlePrashamrati Prakaranam
Original Sutra AuthorUmaswati, Umaswami
Author
PublisherJain Dharm Prasarak Sabha
Publication Year1932
Total Pages240
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript
File Size19 MB
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