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________________ 4+0 68+00 Jain Education Internationa उत्सूत्र - शास्त्रविरुद्ध आचरण एज अहितरूप ताप, तेने उपशान्त करनार गुरुमहाराजना मुखरूप मलयपर्वतमांथी नीकलां शीतळ वचनरूप सरस चन्दननो स्पर्श कोइक विरला पुण्यशाळी जीवोने ज थाय छे. जेम सरस चंदनना रसथी जीवने लागेलो ताप शमी जाय छे तेम गुरुमहाराजनां स्नेहयुक्त प्रेमाळ शान्त वचनोवडे भव्यजनोनो अहित ताप उपशमे छे, एटले तेश्रो अहित आचरण तज्जी हित आचरण सेवी सुखी थइ शके छे. ए उपकार श्री गुरुमहाराजनो ज के. " एवी रीते हितोपदेशवडे अनुग्रह करता गुरु महाराजनो बदलो शिष्यवर्गे शी रीते वाळवो ? ते कहे छे. " लोकमां माता, पिता, स्वामी अने गुरु ए बधा उपगारी के माता पोते अनेक कष्ट सहीने बाळकने उछेरी म्होहुं करे छे तेथी तेमज तेने इच्छित वस्तु थापवावडे उपकारी छे. पिता पण हितोपदेश देवावडे तेमज भोजन - वस्त्रादिक हाजतो पूरी पाडवाडे उपगारी छे. राजाप्रमुख स्वामी सेवकानुं अनेक रीते परिपालन करवावडे उपगारी छे. सेवको जो के स्वामीने माटे प्राणत्याग करे छे, परंतु ते तो स्वामीए करेला उपकारना बदला तरीके ज करे छे; तेथी स्वामीनो उपकार अधिक गाय ने आचार्यादिक गुरुमहाराज तो सन्मार्गदर्शक होवाथी, शास्त्रार्थदायक होवाथी तेमज संसारसागरथी पार उतारवा पुष्टावलंबन रूप होवाथी आ लोकमां तेमज परलोकमां एटला बघा उपगारी छे के तेनो कोइ रोते बदलो वळी शके तेम नथी. तेवा परम उपगारी गुरु महाराजनो बदलो कोटि भवे पण वळवो दुष्कर छे. ६९-७१ " हवे विनयनुं अनुक्रमे छेवट मोक्षरूप फळ दर्शावता सता कहे छे. " For Personal & Private Use Only ***+******+***80K+-**+6+ www.jainelibrary.org
SR No.600205
Book TitlePrashamrati Prakaranam
Original Sutra AuthorUmaswati, Umaswami
Author
PublisherJain Dharm Prasarak Sabha
Publication Year1932
Total Pages240
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript
File Size19 MB
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