________________
*O****************
Jain Education Internationa
प्राण खुए छे. केटलाक सुगंधी द्रव्य मेळवीने करवामां आवतुं स्नान, चन्दन - केशर प्रमुख द्रव्यवडे विलेपनरूप अंगराग, अगरबत्ति, कृष्णादि वर्णवाळा धूप, मालतीना पुष्पादिकवडे अधिवास भने सुगन्धि द्रव्यनां चूर्ण ए सुगंधी वस्तुनोवडे जेनुं मन भ्रमित थयेलुंछे एवा जीवो भ्रमरनी पेरे एमां मुंझाइने मरे छे. अत्यंत स्वादिष्ट, सर्व दोष रहित, विविध भोजन तथा सुरादिक पान, छाग हरिणादिकनां मांस, शाली प्रमुख उत्तम धान्य तेमज खांड, साकर प्रमुख मधुर रस ए सर्व रसना इंद्रियना विषयमां गृद्ध-आसक्त थयेल जीव जेम मीन (मच्छ) लोढाना गलयंत्र ( कंटक) अने जालादिकमां बंधाइ जइ विनाश पामे छे म प्रमाद परवश बनी पोताना प्यारा प्राणने खोइ बेसे छे. शयन-मूह रहेवानी प्रमाणोपेत शय्या, आसन - बेसवाने अनु कूळ मृदु- सुकुमाळ पट्टादियुक्त, संबाधन-अंगमर्दन, सुरत- सुकुमार शरीरवाळी प्रिया संबंधी चुंबन आलिंगनादि अने पूर्वोक्त स्नान तथा अनुलेपनमां आसक्त - व्यसनी जीव, स्त्री शय्यादि संबंधी स्पर्शयोगे मतिमूढ बन्यो सतो गजेन्द्रनी पेरे परवशताना दुःखने पामे छे. एवी रीते शिष्ट ( विवेकी) जनने उचित ज्ञान अने आचरणथी सदंतर बेनशीब रहेला तेमज पांचे इंद्रियोना विषयोने पराधीन थइ पडेला पामर प्राणीभोने श्र लोक तेमज परलोक संबंधी अनेक दोषो बहु पेरे पीडाकारी थाय छे उपर बतावेला दृष्टांतथी या लोक संबंधी प्रत्यक्ष दोष जणाव्या, तेमज परलोकमां नरकतिर्यचादिक नीच गतिमां वारंवार जन्म मरण करवा संबंधी दोषो पण समजी लेवा. स्वच्छंदपणे विषयसुखमां आसक्त थइ रहेनार जीवने संसारचक्रमां अनेकवार परिवर्तन करतां अनेक प्रकारना कडवा अनुभव करवा पडे छे. शब्दादिक एक एक विषयना संग वडे रागद्वेष प्राधीन थवाथी विह्नळ बनेला ते कुरंग ( हरिण ) आदि प्राणीश्रो अपथ्यने सेवनार रोगीनी पेरे विनाशने
For Personal & Private Use Only
*************
www.jainelibrary.org