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________________ श्री प्रशमरति प्रकरणम् अने विचित्र रूपमा लीन चक्षुवाळो जीव पतंगनी जेम परवश थइ प्राण तजे छे. स्नान, विलेपन, गंधवट्टि, वर्णक (रंग), धृप, खुशबो तथा पटवास वडे करीने गंधभ्रमित मनवाळो प्राणी मधुकरनी पेरे विनाश पामे छे. मिष्टान्न, पान, मांस, प्रोदन आदि मधुर रसना विषयमा गृद्ध थयेलो आत्मा गलयंत्रमा लोहकंटकथी विधायेला माछलानी पेठे विनाशने पामे छे. शयन, आसन, अंगमर्दन, रतिक्रीडा, स्नान अने अनुलेपनमां आसक्त थयेलो मूढात्मा स्पर्श इंद्रियना विषयमा मुंझाइने गजेन्द्रनी पेरे बंधनने पामे छे. एवी रीते जेमनी शीष्ट जनोने इष्ट एवी दृष्टि अने चेष्टा प्रणष्ट थइ छ एवा इंद्रियोने परवश पडेला प्राणीसोना भनेक दोषो बहु रीते बाधाकारी थाय छे. एकेक इंद्रियनी विषयासक्तिथी रागद्वेषातुर थयेला ते प्राणीओ विनाशने पामे छे तो पांचे इंद्रियोना विषयोने परवश पडेला मोकळा मानवीनुं तो कहेवुज शुं ? ४१-४७. विवेचन-कल एटले ग्राम राग संबंधी रीतिथी युक्त (मनहर ), अने श्रोत्रने सुखदायी स्वरवाळा गंधर्वना वाजित्र तथा स्त्रीना झांझर प्रमुख विभूषणना ध्वनि विगेरे मनोहर शब्दोवडे श्रोत्रंद्रियना विषयमा जेनुं हृदय तल्लीन थयुं छे ते हरिणनी पेरे विनाशने पामे छे. एकज श्रोत्रंद्रियना विषयमा निमग्न थइ गयेलो हरिण प्रमादवश मरण पामे छे तेवीज रीते बीजो गमे ते स्वेच्छाचारी पण दुर्दशाने पामे के. ठमका करती चाल (विकारवाळी गति), स्निग्ध दष्टिथी अवलोकन, स्त्री संबंधी मुख, साथळ प्रमुख अंग-प्राकार, विलासयुक्त हास्य अने स्त्रीनां कटाचवाणथी विधायेलो जीव, स्त्री प्रमुखना सुंदर रूपमा स्वेच्छा मुजब चक्षुयुगल स्थापी परवश बनेलो पतंगनी पेरे पोताना प्राण खुए छे. जेम पतंग एक चतु इंद्रियना प्रबळ विकारने वश थइ दीपक (अग्नि) मां झंपलाइ मरे के तेम अन्य प्राणीओ पण प्रमाद प्राधीन बनी पोताना Jain Education intended For Personal Private Use Only by na
SR No.600205
Book TitlePrashamrati Prakaranam
Original Sutra AuthorUmaswati, Umaswami
Author
PublisherJain Dharm Prasarak Sabha
Publication Year1932
Total Pages240
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript
File Size19 MB
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