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ताः कृष्णनीलकापोततैजसीपद्मशुक्लनामानः । श्लेष इव वर्णबन्धस्य कर्मबन्धस्थितिविधात्र्यः ॥ ३८ ॥
भावार्थ-ते (लेश्याओ) कृष्ण, नील, कापोत, तेजस, पद्म भने शुक्ल नामे छे, अने ते चित्रकाममा सरेस (श्लेष ) नी पेठे कर्मबंधनी स्थितिने करनारी छे. ३८
विवेचन-लेश्यानां छ भेद कह्या छे. कृष्ण, नील, कापोत, तेजस्, पद्म अने शुक्ल ए तेनां नाम छे. जंबुफळ (जांबु) खावाने इच्छता छ पुरुषोना दृष्टांते पोतपोताना परिणामनी अपेचाए अध्यवसायविशेषरूप लेश्या जाणवी. बीजा प्राचार्यों कहे छे के कायादिक योग परिणाम ए लेश्या छे. केमके काया भने वाणीनो व्यापार पण मनःपरिणामने अपेक्षीने तीव्र-अशुभादिक होय छे. अशुभ के शुभ कर्मद्रव्यसदृश प्राणीओने पोताना मनना परिणाम थाय छे. जेम भीत प्रमुख उपर चित्रकर्म करवामां वपराता रंगोमां श्लेष (सरेस ) नांखवाथी ते चित्रकर्म चिरस्थायी मजबूत-टकाउ थाय छे तेम उपर कहेली षट् लेश्या शुभ के अशुभ कर्मनी स्थितिनुं निर्माण करे छे. एटले के कृष्णादिक त्रण लेश्यामो अशुभ कर्मनी अति दीर्घ अने दुःखदायी स्थिति नीपजावे छे त्यारे तेजस्, पद्म अने शुक्ल लेश्याश्रो अति शुभ फळने आपनारी थाय छे. ३८ ___एवी रीते कर्मनो बंध थये सते शुं थाय छे ते कहे थे. कर्मोदयाद्वगतिर्भवगतिमूला शरीरनिवृत्तिः । देहादिन्द्रियविषया विषयनिमित्ते च सुखदुःखे ॥३६॥
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